बड़ा मीठा है मेरा दर्द

यहाँ ख़ुशी से खिलना

अभियोगी रे

किसने बहाना ढूंड के

रक्त तिलक करले

मै निर्झर हूँ

सपने भोर हो गई

लहरों में आ

फिर से शमाएं जल उठी

फूल खिलेंगे धीरज धरिये

कुछ संभल सको तो

नीला गगन हो मस्त साथी

पा रहे है क्यों सजा ?

चढ़ना हो पूजा में तो

मांझी है हम सागर के

विजय का स्वयंवर

मात्र युद्ध !

वाह बुंदेलखंड ! वाह !! धन्य मालवा ! धन्य !!

वंदना के गीत मेरे

वाह अजमेर ! वाह !!

जलवे अनेक रण के

वाह ! सौराष्ट्र वाह !!

धन्य गुजरात ! धन्य !!

वाह डूंगरपुर ! वाह !!

वाह रे कच्छ ! वाह !!

धन्य प्रतापगढ़ ! धन्य !!

वाह शाहपुरा ! वाह !!

धन्य बूंदी ! धन्य !!

वाह करौली ! वाह !!

धन्य आम्बेर ! धन्य !!

वाह शेखावाटी ! वाह !!

बदलते द्रश्य -4

बदलते द्रश्य -3

बदलते द्रश्य -2

बदलते द्रश्य -1

बदलते द्रश्य

बिछुडे हुए बुलाकर

तुम आओगी माँ

अब उठ मेरे मनवा

अब क्यों खडा तू मौन है ओ कौम के जवान

ओ जाग मेरे बलिदान !

हर कठिनाई हर ठोकर पर मेरे दिल तू हँसता जा

जब गम की घटाएँ छाए कुछ हंस के रो देना

दे दो ! दे दो !

चमका भी था गगन में

ए जी थांरा टाबर झुर-झुर रोवै म्हारी माय

बे दर्द बन रे याद में अब जल ढलता है तो ढलने दे

धरती रा थाम्भा कद धसकै

मेरे वीर दुर्गादास

नाच मन मयूर

कदम तुम्हारे कांप रहे क्यों

किसी बीते हुए युग की

चिता जल रही है

साथी तू सोच जरा

शमाएँ जल रही क्यों

देखा मैंने तैरना

आओ जरा से बैठकर

कहो चुकाई कीमत किसने

हैर जोवै मारगडो

टिम टिम करते तारे बुलाते

हृदय की आग धधका कर

गूंजे आज जगत के कोने

दिया जले -----

मग भूल गया है जो

यह कौनसी शमा

देव तुम्हारे सन्मुख

ओ उजड़ी हुई मानवता

यह है हमारी जिन्दगी की उजड़ी हुई कहानियां

हंसती है जग की होनी जो, रोना मुझे तो आ गया

अरमानो की दुनिया

उस गुजरे हुए ज़माने की कोई बात सुनाए

चालण रो वर दे माँ मार्ग कांटा सूं भरपूर

मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना

मारग में पंथी तू चलना संभल के

जल जल कर उठने वालों को

जब महाकाल संघर्ष मचाता

मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

बन्धनों को तोड़ करके

आई हे भाई विदा

लो उतर पड़ी नैया

जीवन के अन्तस्थल में

अब भी क्षत्रिय तुम उठते नहीं

हिन्दू के कुल के उजियारे

जाति के उत्थान पतन की

 

widget
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
www.blogvani.com

Followers