चढ़ना हो पूजा में तो

चढ़ना हो पूजा में तो कहना क्या
अर्चना की थाली भरी ,फिर गीत सुरीले तो कहना क्या ||
नाविक हम है नाव हमारी
सागर है तूफ़ान भारी
अकेले ही मंजिल को तय करना , तेरा साथ मिले तो कहना क्या ||
दिए जले है दीवाली नहीं
उजाला अतीत का आता कहीं
मंदिर में होती है आरती , पर घट घट में हो तो कहना क्या ||
लक्ष्य है ऊँचा हमारा
एक ही मार्ग का लिया सहारा
ज्योति में ज्योति मिलाने के , इन सुन्दर सपनो का कहना क्या ||
मन के मंथन से सार निकला
तन का वचन योग निराला
अब भेंट हृदय की लाये , तेरी अजब फकीरी का कहना क्या ||
स्व.श्री तन सिंह जी : १४ अक्तूबर १९६१

पुनरागमन

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