हल्दी घाटी स्थित चेतक की समाधी
बे दर्द बन रे याद में अब जल ढलता है तो ढलने दे !
यहीं पास में भ्रातृ प्रेम की , त्रिवेणी बही थी बहने दे !
यही शक्ति सिंह आ के मिला ,
राम से ज्यों भरत मिला |
बिछुडे दिल यदि मिलते हों तो , पगले अब मिलने दे ||१|| जल....
यही हार कर थक कर खोया ,
मेवाड़ धरा का भाग्य है सोया
वसुंधरा का भाग्य हमीं से , आज जगे तो जागने दे ||२||जल...
इस घाटी में जूझ गए थे ,
इस घाटी में स्वर्ग गए थे |
आन के खातिर मरने वालों का , लगे तो मेला लगने दे ||३||जल...
यह तो केवल पशु नहीं था ,
स्वर्ग का शापित देव पुरुष था |
यह मूक नहीं था इसकी भाषा ,कोई सुनता है तो सुनने दे ||४||जल...
स्वामी भक्ति की यही सजा है ,
इस मरने का और मजा है |
तेरे दिल में ऐसा कोई अरमान उठे तो उठने दे ||५|| जल...
मेरे क्रूर विधाता दे दो ,
ऐसा बलिदान उधारा दे दो |
इस दुखिया प्राणों से कोई ,इतिहास बने तो बनने दे ||६||
स्व. श्री तन सिंह जी : २५ मई १९५९, हल्दी घाटी से;
बे दर्द बन रे याद में अब जल ढलता है तो ढलने दे
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स्वामी भक्ति की यही सजा है ,
इस मरने का और मजा है |
तेरे दिल में ऐसा कोई अरमान उठे तो उठने दे |
बड़े दिनों बाद ऐसी देशभक्ति वाली रचना पढ़ने को मिली..शुभकामनाएं.