मेरे साथी तू सोच जरा , मत उपहास करा |
चढा कसौटी पर चढ़ रहना उतरे तो उतर खरा ||
पथ भटकने आयेंगे ,मीत बने दे सीख |
कातिल है ये तेरे सुख के जखम करे क्या ठीक ||
कठिन क्षणों में साथ न छोडे तेरा एक विवेक |
तो चिंता नहीं करें किनारा , बनकर मित्र अनेक ||
एक अकेला होकर भी तू क्यों डरता है प्राण |
चिंगारी छोटी सी करती विप्लव का अंजाम ||
अग्नि परीक्षा से जब होगा जलकर के राख |
कई चढायेंगे मस्तक पर होगा दामन पाक ||
नमो साधना धन्य है निष्ठां द्रढ़ता तुझे प्रणाम |
पीडा को पीले तो नित ले , उठकर तेरा नाम ||
स्व.श्री तन सिंह जी :२१ अप्रेल १९५८
साथी तू सोच जरा
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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