देखा मैंने तैरना , छप-छप बढ़ना , कूद पड़ा मझधार
अब कैसे लगे पार ?
लगा जब डूबने, लहरों में झूलने , नाव खड़ी है कोई पास है
सोचा कि चढ़कर पार हो जाऊँ मै , जीवन किनारा पास है
पर टूट गई पतवार , अब कैसे ................................
आंधी आई डटकर ,नाव को उलटकर , डाला है बीच भंवर में
साथी न संगी दीखता है कोई , एक अकेला समर में
यह मौत रही ललकार ,अब कैसे ..................................
वर्षों की साधना ,कष्टों की कामना, आज दोनों मेरे साथ है
लपट झपट धारा से लड़ता , काली अँधेरी रात है
मन हिम्मत मत हार , अब कैसे ....................................
ममता का पाश तोडा जीवन का मोह छोडा , निर्बल हाथ पसारे
देखा कि मुझको हाथ पकड़कर , ले गया कोई किनारे
हो गई जय जय कार , अब कैसे ....................................
स्व.श्री तन सिंह जी : १० फरवरी १९५८
देखा मैंने तैरना
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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