मेरे वीर दुर्गादास ! लौट के आ रे ! लौट के आ !
पाल पोष बड़ा किया था राज्य भी लौटा दिया ,
काश मेरे कुल की रीत देश से निकाल दिया !
मेरी कृतध्नता को वीर एक बार भूल जा !
तेरी समाधी चीखती है वियोगनी सी बनी ,
उसी के आंसुओं से क्षिप्रा हो गयी मन्दाकिनी !
तेरी ही यादगार की तू याद ले के जा रे ! आ !
घोडे की पीठ पर भी रोटी सेकना नहीं सुना ,
ठोकर लगाये राज्य के वो सिपाही ना सुना !
उपेक्षितों की धडकनों को आज सुनके जा रे ! आ !!
प्रयास एकता के तेरे देश न हीं भुलायेगा ,
तेरे बिना बिछुडों हुओं को कौन एक बनाएगा !
टूटी हुई है श्रंखला , ये कड़ी तो जोड़ के जा !!
दुश्मन के दास हो गए स्वतंत्रता गुमा दी है ,
तेरी अमूल्य थातियों को कौडियों में खो दी है !
राजा से रंक हो गए अब लौट के आ रे ! आ !!
अरे गगन के बादलो मेरा सन्देशा लेके जा !
मुझसे सहा न जाता है ,व्यथा मेरी तू लेके जा !
करता पुकार दुखी हुआ सान्तवानाएँ देके जा !!
स्व. श्री तन सिंह जी : उज्जैन ११ फरवरी १९५९
मेरे वीर दुर्गादास
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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