वाह डूंगरपुर ! वाह !!

चित्रपट चल रहा था दृश्य बदल रहे थे उन्ही दृश्यों में
मैंने घोडे देखे | सामन्त सिंह के घोडे देखे जिसने गुजरात तक अपनी सीमाएं बढाकर अजयपाल सोलंकी को परास्त किया | उन्ही घोडों से मैंने बागड़ में एक नया राज्य कायम होते देखा | अंतिम हिन्दू सम्राट महाबली पृथ्वीराज के साथ मैंने सामंत सिंह के घोडे तराइन के युद्ध क्षेत्र में शहाबुद्दीन गौरी से अड़ते देखे | खोये हुए राज्य को जयंत सिंह के घोडों से पुनः प्राप्त होते देखा |मैंने महारावल सिहड़देव के घोडों को देखा जिन्होंने बडोदा तक राज्य विस्तार किया | मैंने वीरसिंहदेव और डूंगर सिंह के घोडों को देखा जिनसे बागड़ डूंगरपुर कहलाने लगा | मैंने महारावल गोपीनाथ के घोडों को देखा जिनसे गुजरात के सुल्तान अहमदशाह और फिर उसके बेटे महमदशाह को हारते, उसकी सेना को नष्ट होते , लुटते और भागते देखा | मालवे के सुल्तान महमूद खिलजी को डूंगरपुर पर आक्रमण करते देखा और उसका सोमदास के घोडों द्वारा दिया करारा जबाब देखा | महाराणा संग्राम सिंह के साथ मैंने महारावल उदय सिंह के १२ हजार घोडे खानवा के युद्ध क्षेत्र में दौड़ते देखे | अजमेर के गांव हरमाडा के पास हजीखान से लड़ते देखे | मैंने वीरभान के पुत्र सूरजमल के घोडे देखे जिसने अकेले ही मेवाड़ की फौज को डूंगरपुर पर आक्रमण करने से रोक लिया | उसी वीरभान चौहान के घोडे मैंने माही नदी पर जूझते देखे और मेरे मुंह से निकल पड़ा - वाह डूंगरपुर ! वाह !!
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