मात्र युद्ध !

एक दिन की बात है -
उषा रानी अपने पतिदेव के स्वागत के लिए तैयारियां करने लगी | अपने अस्त-व्यस्त तथा लाल पीले और गुलाबी वस्त्रों को समेटती हुई वह गज गति से मन मानस के सरोवर में हंस की भांति उतर रही थी | अकस्मात असावधानी से आँचल की एक पल्लू सोते हुए सम्राट कुमारगुप्त की नींद से छेड़छाड़ करता हुआ पकड़ लिया गया |
रात्री तो सम्राट की आँखों में ही विश्राम कर रही थी | हूणों के अत्याचार आर्य संस्कृति के मूलोच्छेदन के लिए कृत संकल्प थे ,प्रजा में त्राहि त्राहि मची थी अतः प्रात:काल ही उनके दमन के लिए अपनी चतुरंगी सेना सहित उन्हें प्रस्थान करना था | उषा की हल्की सी पदचाप ने इसलिए निंद्रा को सजग कर दिया | एकाध करवट के बाद शय्या त्याग कर सम्राट ने सेनापति को उचित आदेश दिए और स्वयम प्रस्थान की तैयारी में जुट गए |
एक दिन की बात है -
नहीं स्कन्द ! तुम अभी बहुत छोटे हो |
पिताजी ! आयु की तराजू में क्षात्र धर्म नहीं तुलता , एसा गुरुदेव ने बताया था |
यह ठीक है पर हूंण बड़े अत्याचारी है उन्हें तुम्हारे जैसे निर्दोष पुष्प को निर्दयता पूर्वक मसलने में जरा भी दया नहीं आएगी |
महाराज मैंने सुना है कि राज्यलक्ष्मी का सुहाग दया की भीख से नहीं तलवारों के पुरुषार्थ से भरा जाता है | हूणों की दया से जीवित रहकर में धरती की मांग पर सिंदूर नहीं भर सकता | मुझे आज्ञा दीजिए पिताजी , मै भी युद्ध में जाऊंगा |
बेटा तुम बहुत छोटे हो | मौत से लड़ने के लिए तो हम जैसे बुड्ढों को ही जाने दो | वह हमारे लिए ही है |
' तो फिर मै भी उससे लड़ कर देखलूं न | यदि लड़ने में आनन्द है तो एक पुत्र के नाते मै आपसे उस आनन्द की भीख मांगता हूं और उसमे दुःख है तो उस दुःख में पुत्र के नाते अपना हाथ बंटाकर पितृ ऋण को चुकाना चाहता हूं | मै आपका पुत्र हूं | पिताजी ! क्या मेरा इतना आग्रह स्वीकार नहीं करोगे ?
और पिता कुमारगुप्त इस आग्रह को टाल नहीं सके |
एक दिन की बात है -
एक छोटा सा अलबेला राजकुमार हृदयहीन हूणों के विरुद्ध लोमहर्षक युद्ध में योगियों सी एकाग्रता से सलंगन हो गया उसकी तलवार काल के कदमो सी अनवरत रूप से चल रही थी उधर हाथियों के कलेजे दहलने लगे , आकाश घायल होकर पृथ्वी की और झुका आ रहा था , दुर्दमनीय मौत अपनी जिन्दगी से शायद पहली ही बार कायर होकर भागने वालों का आश्रय ले रही थी और वह तैरता जा रहा था युद्ध क्षेत्र में समस्त बाधा व्यवधानों को चूर चूर कर किसी बाल कवि के फड़कते उद्गारों की भांति |
फुर्सत ने आकर अपना परिचय दिया " मै षोढशी हूं, सुरबाला हूं ,कोमलांगी हूं , मेरा पाणिग्रहण करो |" उस छोटे राजकुमार ने कहा -' जरा युद्ध करने दो ; फुर्सत से आना ,फिर तुमसे भी युद्द करूँगा |'
राज्य सुख आया -'मै तेरा सखा बनूँगा | चलो क्षण भर आँखमिचोली खेलें |' उस नर पुंगव ने कहा था - ' आंखमिचौली खलने का मै आदि नहीं हूं; मै युद्ध को खेल लूँ , फिर एसा ही खेल तुमसे भी खेलूँगा |'
एक दिन की बात है -
भगवान भास्कर ने संध्या के समय देखा शत्रु भाग गए थे और वह छोटासा नरसिंह युद्धभूमि में थककर वहीँ पड़े किसी शव का सिरहाना देकर सो गया है | उन्होंने कहा, 'बेटा तुम्हारा युद्ध अकथनीय व अतुलनीय है पर तुम थक गए हो ,आओ मेरी गोद में आज कि रात विश्राम कर लेना ?' पर उस लाजबाब का जबाब था ,-' भगवान ! आप भी दिन रात चलाते हुए विश्राम नहीं लेते ,फिर मुझे क्या विश्राम दोगे | लेकिन काल मै आपको विश्राम कराऊंगा | सुबह मै एसा अनुपम युद्ध लडूंगा , एसा भीषण और प्रलयंकारी संहार करूँगा , एसा अनिर्वचनीय पुरुषार्थ दिखाऊंगा कि थोडी देर आप भी रुक कर देखने लग जायेंगे |'
बोद्ध धर्म आया अहिंसा और शांति का उपहार लेकर और कहा , ' इसे स्वीकार करो |' तब उस कर्मयोगी ने उत्तर दिया , मेरा प्रत्युतर युद्ध है , वह मै तुम्हे दूंगा ,लेकिन पहले यह आया युद्ध तो लड़ लेने दो |'
एक दिन की बात है -
बुद्धगुप्त उसका ही एक भाई उसी की राजगद्दी पर अवसर पाकर बैठ गया | लोगों ने कहा ,' अब तो युद्ध छोडो,अपने अधिकारों को प्राप्त करो |' तब उस कर्तव्यनिष्ठ योद्धा ने कहा था , ' मै राजगद्दी के लिए युद्ध नहीं छोड़ सकता | यह जन्म तो संघर्ष के लिए ही है , किसी अन्य संघर्षहीन जन्म में राजगद्दी के लिए भी लडूंगा |'
अनन्त आकर ललकारने लगा , ' तुम सबसे युद्ध युद्ध की बातें करते हो ,हिम्मत हो तो मुझसे लड़ लो |' और वह उस पर भी टूट पड़ा | अनन्त ने पैंतरे बदले ,उछल कूद की, पर वह हार गया और अंत दे गया |
एक दिन की बात है -
स्पेन तक विजय प्राप्त करने वाले ,रोम और मिश्र में अपनी ध्वजा फरफराने वाले अजेय हूणों की समाधियाँ से स्कंदगुप्त की समाधी ने पूछा , ' अनन्त से लड़ कर अंत में मुझे बनाया पर तुम्हारा श्मशान किसने बनाया ?'
निश्वासों से भरा हूंण समाधियाँ का परवश उत्तर था - ' हमारा हेतु और कारण भी स्कंदगुप्त एक क्षत्रिय था |'
चित्रपट चल रहा था दृश्य बदलते जा रहे थे | ;

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


Comments :

1
ताऊ रामपुरिया said...
on 

चित्रपट चल रहा था दृश्य बदलते जा रहे थे | अदभुत लेखन है. नमन करता हूं स्व. तनसिंह जी को.

Post a Comment

 

widget
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
www.blogvani.com

Followers