मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना |
फिर चाहे तो अरमानो की होली भी जला देना ||
वन में फूल खिले खिल कर जगत में प्रेम बरसाते |
हंसते है हंसी में फिर हस्ती को मिटा जाते ||
अन्धेरे में पड़े इस ज्ञान से सजा मुझको सजा देना |
मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना ||
घर में दीप जला जलकर जगत को दीप्त कर देता |
परवाना शमा पर चढ़ के निज को खाक कर देता ||
वह जलता वह मरता मुझे कुछ तो सिखा देना |
मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना ||
अन्दर आग जली जल कर न पर्वत को तपाती है|
तभी झरने खलकते और हरियाली सुहाती है ||
भभकने की प्रतीक्षा में मुझे सहना सिखा देना |
मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना ||
स्व. श्री तन सिंह जी : १७ सितम्बर १९५० बाड़मेर |
मेरे सोते हुए जीवन में रणभेरी बजा देना
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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