गूंजे आज जगत के कोने गूंजे सप्त हृदय मानव के |
गूंजी उजड़ी उपत्यकाएं गूंजे है गायन गौरव के ||
एक जमाना था जब ऋषियों ने यज्ञों की ध्वनी को लेकर |
सौरभ फैला देवपुरी में भारत का सन्देशा लेकर ||
हरा भरा माँ का आँचल था नदियों ने फिर सजल किया |
विश्व वंध्य माँ का दुखों में देवो ने उपकार किया ||
डाह भरे बैरी को भारत नभ से उतरा स्वर्ग दिखा |
अगणित शत्रु कीट पतंगे थे हम क्षत्रिय दीप शिखा ||
विजयी जीवन अमर मृत्यु का हमने था इतिहास लिखा |
पढ़ कर जिसे विदेशियों ने कहा धन्य भारत भूमि का ||
आज सैकडों सदियों का फिर पलट दिया इतिहास पुराना |
सोए गौरव मय अतीत से गूंजा है यह संघ तराना ||
आज भीरुता की टूटी है जंजीरे कर झनझनकार |
भारत माँ के रुग्ण भाग्य में गूंजी है वीणा की टंकार ||
गूंजा जय जय कार ||
एक जमाना फिर से आया धर्म तुला था शस्त्रों पर |
बंछी भालों और कृपाणों में चमका था तेज प्रखर ||
हरा चहकता चमन उजाडा यवनों की बाजी शहनाई |
मरू की बालू से लपटों ने नागिन सी फुफकार मचाई ||
जागे बाप्पा सांगा जागे जागे पृथ्वीराज हम्मीर |
जागे जयमल पत्ता जागे मालदेव जसवंत प्रवीर ||
वैभव राणा ने ठुकराया स्वतंत्रता ने था ललकारा |
नहीं झुका सिर नहीं झुकाया अमर हुआ इतिहास दुलारा ||
आज अचानक फिर से जागी जमे रक्त की त्वरा पुरानी |
नए सिरे से फिर से लिखनी बलिदानों की अमर कहानी ||
आज भीरुता की टूटी है जंजीरे कर झनझनकार |
भारत माँ के रुग्ण भाग्य में गूंजी है वीणा की टंकार ||
गूंजा जय जय कार ||
एक जमाना ख़त्म हुआ जब अंग्रेजो की माया फैली |
देखा परदेशी चश्मों से भारत की संस्कृति है मैली ||
फिर से सोई राणा की हुंकारे प्यानो के तारों में |
पानी बिखर गया प्यालों में कहाँ रहा वह तलवारों में ||
हुई सभाएँ ताली पीटी प्रस्तावों में हुए सुधार |
महान संस्कृति के उच्च अश्व पर लन्दन की मिस हुई सवार ||
किन्तु नव जागृति चेतनता ने भाग्य का तख्त पलट दिया |
सोये और उपेक्षित जन के जीवन का चख स्वाद लिया ||
आज भीरुता की टूटी है जंजीरे कर झनझनकार |
भारत माँ के रुग्ण भाग्य में गूंजी है वीणा की टंकार ||
गूंजा जय जय कार ||
एक जमाना आज खडा है नव भारत के अरुणोदय सा |
नव प्रकाश है नव जागृति है नव चेतन है सुप्त क्रांति सा ||
चवांलिस की चिंगारी ने सैतालिस में आग लगाई |
जगी मशाले जागे दीपक नगर-नगर ने ली अंगडाई ||
हींसे घोड़े बजे नगारे रणभेरी से बजी बधाई |
जागो जागो जागो जागो जागो रण की बेला आई ||
कमर कसे केसरिया पहने आज खड़े है सीना ताने |
आज चुनौती है विप्लव को मेरे पथ की बाधा बनने ||
महा हवन की समिधायें बन बलिवेदी पर आज खड़े है |
शांत सुप्त ज्वालामुखियों के अंगारे बन बरस पड़े है ||
आज भीरुता की टूटी है जंजीरे कर झनझनकार |
भारत माँ के रुग्ण भाग्य में गूंजी है वीणा की टंकार ||
गूंजा जय जय कार ||
स्व. श्री तन सिंह जी : २८ अप्रेल १९४९ रामदेरिया |
गूंजे आज जगत के कोने
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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