मांझी है हम सागर के मत देख हमारी बाट, घाट पर रहने वाले !
हमने एक पुकार सुनी थी
तब मरने की हूक उठी थी
पागल बन जग बन्धन तोड़े ,कूद पड़े मझधार से डरने वाले !
ज्ञानी बन कई तीर खड़े थे
अज्ञानी कई सुबक रहे थे
किन्तु किसी के स्नेह शोक ने दिया न अब तक साथ -साथ अब होने वाले !
लहरों ने फिर पाठ पढाया
तूफां ने जी भर धमकाया
अनुनय से नहीं हट से पाई सागर की सौगात -बात पर रहने वाले !
श्रम बूंदों से बना है खारा
अरमानो से हुआ है गहरा
हमसे ही सागर ने सीखी मर्यादा की बात - लीक पर चलने वाले !
जब चलता है पवन सनन सन
मस्त गगन में मगन सघन घन
तब कितनी मस्ती में हमारी चलती है पतवार - वाह रे कहने वाले !
कभी आँख में उदधि खौलते
वही भाप ले बादल छाते
तेरी प्यास के लिए हमारे नयन बहाते धार- हार कर रोने वाले !
अब उषा ने ली अंगडाई
इस बस्ती में मस्ती छाई
अरे कौम के भाग्य में अब तो आया नया प्रभात - रात भर सोने वाले !
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धरती का सुहाग
मांझी है हम सागर के
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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