चित्रपट चल रहा था द्रश्य बदल रहे थे इन्ही द्रश्यों में मैंने देखा
मैंने सिरोही के राव अखैराज को देखा जिसने जालौर में गुजरात के सुल्तान की और से रहने वाले पालनपुर के बुजुर्ग मजाहिद खान को कैद किया था | राव दुदा को देखा जिसने भाई की संतान के वैधानिक अधिकार के लिए अपने पुत्र तक को राज्य से वंचित कर दिया | राव मान सिंह को देखा जिसने एक दिन में बाईस मेवासों पर अधिकार किया था | भाग्य की उथल पुथल में मैंने जीवट की झांकी देखि | प्रबल पराक्रमी राव सुरताण को देखा जिसने अपने अथक प्रयत्नों से कई उथल-पुथल के बाद भी सिरोही को अपने हाथ से नहीं जाने दिया | छोटे से भूखंड में भी मैंने जीवन संघर्ष की विपुल ममता देखि | दुर्भाग्य के बन्धनों में जकडे हुए साहस की करामात देखि और मेरे मुंह से निकल पड़ा - वाह सिरोही ! वाह !! ;
बदलते द्रश्य -1
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