किसने बहाना ढूंड के सोते हुए जगा दिया
हँसते फूलों से बाग़ में , काँटों में किसने रुला दिया
मीठी सदा बहार थी , कैसा था मेरा घौसला
आकाश में थे रास्ते , तिनको में भी था हौसला
पंछी की दुनियां लूट के ,दुनिया का पंछी बना दिया ||
जितने ही ऊँचे स्वप्न थे ,उतने ही हिम्मत पस्त थे
सपनो में रोती जहान थी , अपने तो मौला मस्त थे
गैरों का पानी आँख को दे , जालिम ये तूने क्या किया ||
पतंगा पूछता शमा से , ऐसे ही क्यों जला दिया
भोले भोले मेरे साथी ,झूंठा ही दोष लगा दिया
अपनी ही आग से जल रही थी , अपने को क्यों जला दिया ||
करते कई दया भी हम पे , कुछ हम पे मुस्करा रहे
हाथों ही यों बरबाद कर , कितने ये नादां बन रहे
हमको भी देखो लूटके ख़ुशी से ,उनको लुटेरा बना दिया ||
स्व.श्री तन सिंह जी : २३ मार्च १९६३
किसने बहाना ढूंड के
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत सुंदर जी बहुत ही बढिया रचना ..लिखते रहें
अजय कुमार झा