चालण रो वर दे माँ मार्ग कांटा सूं भरपूर ||
पग-पग कांटा जग में दिसै ,
कांटा में कई फूल निपजै |
कांटा री दुनियाँ में माता क्यूँ जाऊँ मै भूल || चालण......
हालण लाग्यो जळ थळ सारो ,
झोंका दे बायरियो प्यारो |
ऊँचा महल उबासी लेवे झुंपी झेरां पूर || चालण.....
आज सांच रो मारग दिसै ,
वीर सुरमा म्हनै उडीकै |
परभाते री नींदडली हमें मत कर तू मजबूर || चालण.....
एक जीव है अंग हजारों ,
छोट मोट है भैद कठे रो |
घर रै गोधम गजनी रै कांटे ,पीथल खोयो नूर || चालण.....
सतियाँ सत् कांटा बळ राख्यो ,
कांटा चल राणै प्रण राख्यो |
हूँ तो माता करणों चाऊ , कांटा रो मदचूर || चालण.....
सुख करतां दुःख आवै आण दे ,
जगहित शिव ने जहर पियणदे |
धर्म प्रीत रा गीत गावतां आवण दे तिरशूल || चालण.....
स्व. श्री तन सिंह जी : १७ मार्च १९५० बाड़मेर
चालण रो वर दे माँ मार्ग कांटा सूं भरपूर
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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