मारग में पंथी तू चलना संभल के ||
आंधी औ तूफान आगे बहुत है |
काँटों भरे पथ पर चलना मचल के ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||१||
विपदाएं आएं आती रहे सब |
सहना सभी किन्तु आंसू ना ढलके ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||२||
जीवन में लहरे आती है हिलोरें |
सुख से न पागल हो दुःख को बदल के ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||३||
अपनी ही आहों व आंसू के प्याले |
पीते जो हंसते वे धन है सफल है वे ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||४||
तेरे लिए जग हो कूप खाई |
गिरने से न डरना ,चलना संभल के ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||५||
हंसती है दुनिया दिखते है नज़ारे |
सत के न तप से तू बहना पिघल के ||
मारग में पंथी तू चलना संभल के ||६||
स्व श्री तन सिंह जी : १८ मार्च १९५० राजपूत बोर्डिंग हाउस ,बाड़मेर |
मारग में पंथी तू चलना संभल के
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत बढिया रचनाएं प्रस्तुत की है।आभार।