बन्धनों को तोड़ करके जा रहे किस और राही !
आज जग में छाया उजेला ,
नव प्रभात की है भव्य बेला,
रात का आलस्य लेकर सो रहे क्यों आज राही !
लक्ष्य तेरा भव्य सुन्दर,
पंथ भी सबसे सुगमतर ,
विध्न बाधा देखकर क्यों , भूलते हो स्वगुण राही !
जन्म ने बंधन बनाए ,
मृत्यु पर नव जन्म आए ,
है इसीलिए संघर्ष जीवन,शांत क्यों चुपचाप राही !
इधर वैभव नृत्य होते ,
उधर संस्कृति के दो टूक होते ,
तड़फतों का यह तमाशा ,देखकर क्यों मौन राही !
स्व.श्री तन सिंह जी : २७ अप्रैल १९४९ रामदेरिया
बन्धनों को तोड़ करके
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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bahut khoob !