tag:blogger.com,1999:blog-61714626826724611612024-03-06T04:32:50.233+05:30Shri Tan Singh, BadmerFounder: Shri Kshatriy yuvak sangh.
ex.M.P BadmerUnknownnoreply@blogger.comBlogger168125tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-79270850741726450452010-10-02T09:39:00.003+05:302010-10-02T09:51:22.973+05:30भूल भी थी कैसी<font size="3">भूल भी थी कैसी फूल सी कोमल <br />सो न सकी तडफी प्राण सी <br /><center>बचके मैं चलता तो यों नहीं जलता <br />और जल नहीं जाता तो क्या मैं करता <br />पलकों की छाया में सोई हुई थी कहानी <br />आँख अनजानी में पहचाना था पानी <br />काश कि मेरी दर्द की उलझन,हो सकती आसान सी ||</center><br />दर्द जो बांटा तो मैं नहीं बोला <br />परदेशी आये पट मैंने खोला <br />मेरा कुछ नहीं ले के, मुझको ही लिया <br />बदले में केवल दर्द ही दिया <br />हार तो मेरे भाग्य पे दौड़ी,चढ़ आई अभियान सी ||<br /><center>हंसो नहीं मेरी सुख की समाधि है <br />फूल चढ़ाओ ये प्रीटी अनादि है <br />भूल जाओ तुम भूलों को यादें जगाओ <br />शुलों के सिर पे कफ़न जलाओ <br />कर्म की मेरी जीवन यात्रा, शेष रही तूफ़ान सी ||</center></font><br /><a href="http://taau.taau.in">27</a> <a href="http://www.gyandarpan.com">दिसंबर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com">1967</a> <br /><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/10/19.html">हठीलो राजस्थान-19 | Rajput World</a>Unknownnoreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-38953048988219973052010-08-06T19:14:00.003+05:302010-08-06T19:30:09.536+05:30कुण कुण रे कुण कुण रे<font size="3">कुण कुण रे कुण कुण रे<br />कुण कुण है थारै हिवडै में साथी नाम बता हूं तिलक करूं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />एक तो मन में बस्यो सांवरियो जुग-जुग सूं मैं भजन करुं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />दूजा रजपूती रा आंटा ,जिण रा जाझा जतन करुं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />तीजो नाम लियो जद संघ रो, जंगळ जंगळ मगन फ़िरुं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />चौथौ है प्यारो केशरियो, झुक-झुक हूं सिर चरण धरूं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />धरती रा ठुकराया धणियां बाथां भर थानै वरण करूं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><br />अनमी म्हारी बाट बटाउडा, दुसमण नै भी सैण करूं<br />नाम बता हूं तिलक करुं |<br /><a href="http://taau.taau.in">२२ मई</a><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/"> १९६७ </a><br /></font><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/08/blog-post.html">असिस्टेंट कमान्डेंट राज्यश्री राठौड़ :राजस्थान की पहली महिला पायलट | Rajput World</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/08/rajasthani-tarban_02.html">ग्लोबल होता राजस्थानी साफा | ज्ञान दर्पण</a>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-35815448001441473532010-08-05T06:44:00.001+05:302010-08-05T06:52:27.734+05:30कांटे ही कांटे यहाँ<font size="3">कांटे ही कांटे यहाँ दुनियां में ठोर कहाँ ?<br />सो के दम लूँ भी कहाँ ?<br /><br />आया जब कोई गठरी लिए था<br />जान सका नहीं धन किसके लिए था<br />चल दूंगा करके बयां<br /><br />छांह हो उसकी फिर बांह किसी की<br />प्रीत किसी की हो घात किसी की<br />अब बात बनी बेजुबाँ<br /><br />मांगे बिना हूँ किसका नहीं नहीं मैं<br />लेना लिखा नहीं रोकड़ बही में<br />ब्याज को लेना है रे गुनाह<br /><br />कोई मिलेगा सपनों का साथी<br />आँखों का आंसूं अंतर की बाती<br />शलभ वो मैं उसकी पनाह<br />21 नवम्बर 1967</font><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/08/blog-post.html">क्यूँ यह दुनियां ? </a>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-47558713639939856382010-08-01T17:43:00.001+05:302010-08-01T17:56:32.437+05:30दम लेने दो नफरत के<font size="3">दम लेने दो नफरत के दौर मुझे<br />जीवन का इशारा और ही है |<br />मंजिल का आया हो छोर भले<br />सागर का किनारा और ही है ||<br /><br />फुसला के मीठा जाम पिला,किसी ने मुझे बहकाया है<br />तबसे ना लौटी शांति कभी, विवेक नहीं पछताया है<br />बतला दे मुझको तक़दीर मेरी मुझसा आवारा और भी है |<br /><br />मुश्किल से घर के आँगन में मैंने मेहमान बुलाये थे<br />मैं तो उन्हें पहचान सका ना ,वे मेरी कसौटी लाये थे<br />वैसे तो बैठा हूँ गिनलूं भले, जीवन का सहारा और ही है |<br /><br />जबसे तुम आये दृष्टि बदली बदले पुराने अंदाज सभी<br />कितना हूँ बदला कोई कहे, कितना है बदलना और अभी<br />वे दिन भी बदले तुम ना बदले, बदलने वाले और ही है |<br /><br />अरसे से मेरी परिचित ओ , सोई हुई आवाज उठो<br />जीवन के मांझी फिर से मेरी नैया की ले पतवार उठो<br />नज़रों में तेरे अंगार जले दुनियां में निशाने और भी है<br /><a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/08/blog-post.html">5</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/07/85.html">मार्च</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/07/blog-post_24.html">1967</a><br /></font><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/07/blog-post_26.html">विलुप्त प्राय: ग्रामीण खेल : झुरनी डंडा </a>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-16069088226738597622010-07-18T16:11:00.002+05:302010-07-18T16:25:48.225+05:30आई रे काली बदली आई<font size="3">आई रे<br />काली बदली आई पंछी के मन भाई रे<br />नाचने की आज प्यारी-प्यारी ऋतू आई- प्यारी ऋतू आई<br /><br />आज बूंद पूछे नदिया कहाँ को जाये<br />बहने वाले कहाँ ठिकाना पाये<br />कहाँ सिन्धु लहराता कहाँ कुआँ खाई<br />आशियाने की मैंने सीधी राहें पाई ||<br /><br />दीप उजाला परवाने को हरषाये<br />घन गर्जन क्यों मोरों के मन भाये<br />मन का सारंग पूछे किसने बीन बजाई<br />जीवन की कविता की किसने मधुरिम पंक्ति गाई ||<br /><br />आओ उड़कर अगम दिशाएँ छूलें<br />इस बगिया में कुसूमों से हम फूलें<br />मंजिल इतनी ऊँची और हम मंजिल के राही<br />फिर क्यों नहीं मीठी-मीठी बजने दें शहनाई ||<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/07/83.html">10</a> <a href="http://udantashtari.blogspot.com/2010/07/blog-post_15.html">दिसम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/07/water-filtering-methods.html">1966</a> </font><br /><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/07/blog-post.html">फरीदाबाद में आज मनाई गयी महाराणा प्रताप जयंती | Rajput World</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/07/blog-post_05.html">बारिश का मौसम और बचपन के वे दिन | </a>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-6472816491137816152010-07-08T19:41:00.003+05:302010-07-08T19:59:49.878+05:30राही जब से आया मैं तेरी नगरिया<font size="3">राही जब से आया मैं तेरी नगरिया<br />जगमग हो गई मेरी डगरिया<br /><br />तेरे खेलों के मैदानों में मैंने हीरे मोती पाए ...मैंने हीरे मोती पाए<br />तेरे रूखे से जीवन में मैंने अमृत प्याले पाए... मैंने अमृत प्याले पाए<br />तेरे सपनों में रंग ,तेरे कष्टों में उमंग<br />जीवन का तो फल,मैं पा ही गया || राही.......<br /><br />मैं तो कुंठाओं की गांठे बांधे आया तेरे द्वारे --मैं तो आया तेरे द्वारे<br />ज्योंही अंतर की गांठे सुलझी रे टूटे बंधन सारे -- त्योंही टूटे बंधन सारे <br />अब तो जाना है कहाँ,तेरा हो गया यहाँ<br />लाखों युगों की प्रीति पा ही गया || राही ...........<br /><br />मैं तो जाऊँगा जब स्वर्ग लोक में भगवन वहां मिलेंगे -सुनलो भगवन ....<br />तब तो उन्हें कहूँगा स्वर्ग धरा पर,कहना कभी चलेंगे ..हम तो कहना ...<br />तेरा धाम तेरी ज्योति देखा नहीं रोग शोक<br />पूरे जीवन भर हरषा ही गया || राही..........<br /><br />मांझी तुमसे पाया वो सभी अनूठा मैं ही नहीं अनोखा ..केवल मैं ही...<br />कितने विश्वासों का धनि बना पर जग से पाया धोखा ..मैंने जग....<br />जाने पहचाने तुम,अरमानों में भी तुम<br />मुझे एकता का अर्थ अब आ ही गया || राही ...........</font><br /><a href="http://udantashtari.blogspot.com/2010/07/blog-post_06.html">4 </a><a href="http://taau.taau.in/2010/07/81_05.html">दिसंबर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/07/blog-post.html">1966</a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/07/blog-post_07.html">एक कदम दूसरों के लिए </a>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-21975923059614796742010-07-08T07:20:00.004+05:302010-07-08T07:38:12.660+05:30ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया<font size="3">ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया<br />तुम कैसे पार लगोगे बिन हिम्मत बिन खवैया<br /><br />लहरों को अब आजमाओ असमंजस है क्या बोलो<br />कितना बल है तूफानों में अपना भुजबल भी तोलो<br />फिर दांव लो ,पतवार लो,सागर के सीधे वार लो<br />ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया <br /><br />हो जग में ज्योति जगानी जीवन में साध बड़ी हो<br />जुगनू की चमक से क्या हो अंतर में आग भरी हो<br />अंगार लो, संसार को , कुछ ऐसी ही मनुहार दो ,<br />ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया <br /><br />साथ चलो तो आजाओ, हम भी राही मंजिल के<br />ये किस्मत के दुर्दिन है पार करेंगे मिल के<br />हो और के, सब छोडके , आ गले मिलें हम दौड़ के<br />ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया <br /><br />है एक साध्य हमारा एक ध्वजा है भैया<br />एक ही रंग में रंगे है एक ही है खेवैया<br />मन एक हो, हम एक हों, हम सबके सपने एक हों<br />ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया </font><br /><br /><a href="http://udantashtari.blogspot.com/2010/07/blog-post_06.html">4</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/07/81_05.html">दिसम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/07/blog-post.html">1966</a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/07/blog-post_07.html">एक कदम दूसरों के लिए </a>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-83721036401666647292010-07-07T06:32:00.002+05:302010-07-07T06:49:53.146+05:30गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया<font size="3">गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया<br />गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया<br /> गायें घूम.............................................<br /><br />जब से हो गया बिंदु सिन्धु का नदी कूप ना भाये |<br />गायें घूम ...................................................<br /><br />पंडित जन पौथी में उलझे सुलझन खडी सिरहाने |<br />माया के फंदों में भटके लटके कई सयाने ||<br />सब कुछ खोने पर बन्दे ! हम अमर प्रीति फल पायें ||<br />गायें घूम........................................................<br /><br />दूर खड़ा कोई कहता है, यह घाटे का सौदा |<br />पहचानेगा कौन भला यह होनहार का पौधा ||<br />जीवट का कोई दांव लगाने एक बार तो आये ||<br />गायें घूम ..................................................<br /><br />अन्तर्यामी के हम हो गए जाने या अनजाने |<br />मानस पट पर चित्र बने है रंग भरे मन माने ||<br />करें प्रार्थना यही चितेरा हर जीवन में आये ||<br />गायें घूम............................................<br /><br />सभी कहेंगे अर्थ सरल पर कोई कहे समझाओ |<br />इस गायन का सार हमें भी थोडा तो बतलाओ ||<br />गूंगा क्या समझाए वह तो केवल गुड़ को खाए ||<br />गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया ||<br /><a href="http://udantashtari.blogspot.com/2010/07/blog-post_06.html">29</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/07/81_05.html">नवम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/07/blog-post.html">1966</a><br /></font><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_29.html">याद आते है दूरदर्शन के वे दिन |</a>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-8899666486231067522010-06-27T11:21:00.004+05:302010-06-27T11:48:01.109+05:30मिलेंगे बिखरे हुओं के<font size="3">मिलेंगे बिखरे हुओं के निशां कहीं न कहीं<br />करीब आएगा मेरा आशियाँ कभी न कभी<br /><br />किसी ने युग की शिराओं में बड़ी पीड़ भरी |<br />जमीन बीज उगाने को छाती चीर पड़ी ||<br />इधर भी आयेगा वो बागवां कभी न कभी<br />करीब ..........................................<br /><br />चले है बचके सदा अंगारों की राहों से |<br />न मिलेगी रे मंजिल ठंडी सी आहों से ||<br />पर झुकेगा भूलों का आसमां कभी न कभी<br />करीब..........................................<br /><br />खड़ा हूँ जिसके इशारे की प्रतीक्षा में अभी |<br />बुला के रूठ गया है नसीब मुझसे वही ||<br />मेहरबान होगा वो मेजबां कभी न कभी<br />करीब ..............................................<br /><br />पता है चिंगारी को भी जलने वालों का<br />बताता होश कैसा रंग है इन प्यालों का<br />बलाएं लेगा कोई कद्रदां कभी न कभी<br />करीब..........................................<br /><a href="http://udantashtari.blogspot.com/2010/06/blog-post_24.html">27</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/06/80.html">नवम्बर </a><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/06/blog-post_24.html">1966</a><br /><br /></font><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/05/blog-post.html"> राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_15.html">राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को नमन |</a>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-31088073456412045212010-06-26T06:09:00.003+05:302010-06-26T06:29:38.788+05:30मुझे ना तुमसे गिला है कोई<font size="3">मुझे ना तुमसे गिला है कोई<br />रहो हमारे ,चले भी जाओ,चले भी जाओ |<br /><br />तुमने जो किया वो थोडा भी नहीं था |<br />जितना चुकाया वो कम भी नहीं था ||<br />जमाने आये हिसाब करने ,<br />बाकी बचा हो तो,वो ले भी जाओ ,ले भी जाओ ||<br /><br />मैंने दिया वो स्वभाव मेरा |<br />कर्तव्य मेरा अधिकार तेरा ||<br />हंसके मिले थे हँसते भी रहना ,<br />ये ही दुआएं लेते भी जाओ ,लेते भी जाओ |<br /><br />बातें वे भूली तो गम भी नहीं है |<br />रातें वे बीती तो चिंता नहीं है ||<br />प्याले पियेंगे जो हिस्से में आए<br />बोझा हो देना तो ,देते भी जाओ ,देते भी जाओ ||<br /><br />अकिंचन नहीं हम उपेक्षित रहे हो |<br />मगर तुम हमारे जो साथी रहे हो ||<br />हम जैसा कोई न विश्वास काबिल ,<br />कर सको ये विश्वास ,करते भी जाओ ,करते भी जाओ ||<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/06/blog-post_24.html">4 सितम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/06/blog-post_24.html">1966</a> </font><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_22.html">इंकलाब री आंधी(राजस्थानी कवि रेवतदान की एक शानदार रचना) |</a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/05/1.html"> वीर श्रेष्ठ रघुनाथ सिंह मेडतिया , मारोठ-1</a>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-26200133202270983852010-06-16T07:27:00.002+05:302010-06-16T07:39:17.928+05:30कौन थी आशा थी तुम्हारी<font size="3">कौन थी आशा थी तुम्हारी जो अभी पानी थी<br />याद कैसी थी हमारी जो नहीं आनी थी<br /><br />हमने क्या दखल दिया ,आप खुद ही आ बैठे<br />बचके जो निकल गए , राह को ही ले बैठे<br />साथ होने में बुराई भी नहीं मानी थी || याद कैसी ....<br /><br />मन में जब पीर भरी कोई छिपाए कैसे<br />दृग से जो नीर ढले वो न रुलाये कैसे<br />आग सपनों की सभी में तो कभी जगानी थी || याद कैसी<br /><br />जिए यों जीवन की तासीर नहीं जानोगे<br />आग ही जो बुझ चुकी तो राख से क्या पावोगे<br />लाग ऐसी थी नहीं यों ही लौ लगानी थी || याद .....<br /><br />चाहो तो व्यर्थ उड़ो , पांव में जंजीरें है<br />मेरे आगोश में पड़ी मेरी तस्वीरें है<br />आज आये हो इकाई तो बड़ी पुरानी थी || याद ....<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/06/78-hazarduari-palace-museum-murshidabad.html">4 सितम्बर </a><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/06/blog-post.html">1966</a><br /><br /></font><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/05/1.html"> वीर श्रेष्ठ रघुनाथ सिंह मेडतिया , मारोठ-1</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_15.html">राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को नमन | </a>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-4865088656899836972010-06-14T06:36:00.001+05:302010-06-14T06:36:59.789+05:30उसके परस बिन मनवा है सूना<font size="3">उसके परस बिन मनवा है सूना<br />जीवन में कैसी बहार रे ?<br /><br />अन्तर में मेरे लवना थी लागी<br />सांचे में प्राण ढले रे ,<br />रैन अँधेरी थी देखा ये सपना<br />मिट गया कैसे सवेरे<br />फिसला कदम क्या खोई है सरगम<br />हो गई भार सितारा रे || उसके ....<br /><br />निराशा में चित्त का रहा ना सहारा<br />माया को खूब जुटाई ,<br />चैन गया सो न लौटा कभी भी<br />झूटी पड़ी रे कमाई<br />मिसरी से मीठी थी यादें पुरानी<br />हो गई है मेरी मजार रे || उसके ....<br /><br />मिले वे ही सांचे मिली नई बातें<br />खिल गयी कली कली<br />चुपके से कोई था मेरे नगर की<br />फिर गया गली गली<br />सपनों को प्राणों को जीवन को मेरे<br />दे गया स्नेह निखार रे || उसके ...<br />26 अप्रेल 1966<br /><br /></font><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/06/blog-post.html">Rajput World: राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जयंती का प्रकट निमंत्रण</a><br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_28.html">नरेगा की वजह से महंगाई में वृद्धी</a><br /><a href="http://taau.taau.in/2010/06/78-hazarduari-palace-museum-murshidabad.html">ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली - 78 (Hazarduari Palace Museum, Murshidabad )</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_10.html">चुनाव प्रबंध , झगड़े और दलित उत्पीडन | Gyan Darpan ज्ञान दर्पण</a>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-57874154456487286042010-06-12T19:51:00.003+05:302010-06-12T20:09:27.055+05:30बहका दिया किसी ने<font size="3">बहका दिया किसी ने पिला<br />कोई जाम मुझे अरमानों का ||<br /><br />राह के काँटो में उलझ गया मैं तो <br />आँख लगी देखा पिछड़ गया मैं तो <br />किसने बताया पंथ मुझे युग युग के परवानों का ||<br /><br />देखे मैंने सांचे रे जिन्दगी में ऐसे<br />आंसुओं को पूछा तो मुस्कराये कैसे <br />जितना भुलाया याद रहा ,कर्जा इन इंसानों का ||<br /><br />कोई चाहे माने कि बहका दिया है <br />जान बूझकर मैंने ये जहर पिया है <br />मन प्राणों को चूम रहा अमृत है अहसानों का ||<br /><br />किसी ने ये सोचा उबर गया हूँ मैं <br />मगर ऐसा डूबा कि गल गया हूँ मैं <br />मिट जाए मेरा नाम भले , रह जाए यजमानों का ||<br />१२ मई १९६६ <br /><br /></font><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/05/blog-post_30.html">आईये हिंदी चिट्ठों पर पाठक बढ़ाएं |</a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/06/blog-post.html"> राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जयंती का प्रकट निमंत्रण</a><br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_10.html"> रेलवे टिकट का उपयोग पशुओ के लिए</a><br /><a href="http://taau.taau.in/2010/06/78.html"> ताऊ पहेली - 78</a><br /><a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/06/ginger-is-boon-for-human.html"> अदरक मानव जाती के लिए वरदान है |</a>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-55889492244078292842010-05-28T07:13:00.002+05:302010-05-28T07:28:35.093+05:30बनी ना बिगड़ेगी रे<font size="3">बनी ना बिगड़ेगी रे , कहानी रे मनवा<br />नसीबों की मारी रे<br /><br />खिला दिए है फूलों को कांटो में भी हमने<br />युगों से भरी है पहली , धरा ने किलकारी रे ||<br />नसीबों की मारी रे ||<br /><br />पीड़ा लेकर खुशियाँ देना कर्जा है जो उसका<br />कौम के चरणों में रहना सदा ही बलिहारी रे ||<br />नसीबों की मारी रे ||<br /><br />बही अकेली की जग में पसीने की धारा जो<br />वो ही तो गंगा है जिसमे तेरी दुनिया सारी रे ||<br />नसीबों की मारी रे ||<br /><br />स्वाति बिना मन का पंछी पीता नहीं पानी रे<br />प्यास की परीक्षा पहले फिर प्यासे की बारी रे ||<br />नसीबों की मारी रे ||<br /><br />धोखा खावो हँसते जाना हमको कैसी चिंता रे<br />परमेश्वर करता है तेरी बन्दे रखवारी रे ||<br />सदा ही संवारी रे ||<br /><a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/05/blog-post_27.html">18</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/05/blog-post_26.html">मार्च</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/05/blog-post_22.html">1966 </a><br /><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post_20.html">एक राजा का साधारण औरत द्वारा मार्गदर्शन</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/05/blog-post_15.html">आदरणीय श्री भैरों सिंह जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि </a><br /><br /><br /></font>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-41109198247750786062010-05-26T06:52:00.002+05:302010-05-26T06:59:22.919+05:30पवन गुन गुना गीत गाता है<font size="3">पवन गुन गुना गीत गाता है<br />प्रीत उसकी युगों पुरानी है<br />आँधियों के इतिहास लम्बे तो<br />एक पौधे की भी कहानी है |<br /><br />उगे है चीर धरा की छाती को<br />कोंपलों के अंदाज जंगल में<br />कोई मिटता कोई उगा करता है<br />नित्य ही सृष्टि के दंगल में<br />ये दरखतों की उंचाई तो -एक बीज की ही निशानी है |<br /><br />क्या बोलेंगी मौसम बहारों की<br />पतझड़ के बाद आती है<br />जो दहक जाए संकल्प सोया तो<br />मरघटों में जान आती है<br />कुर्बान खुशनसीब होता है - मरना जिन्दों की जवानी है |<br /><br />हम झुके राह से हट लें तो<br />धरा का सिंदूर पूंछ जाए<br />सुलगना धर्म मेरा है नहीं तो<br />अंगारे भी राख बन जाए<br />बेमानी न है बूंद स्वाति की - सीप मोती का एक मानी है |<br /><a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/05/how-to-avoid-allergy.html">14</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/05/75_24.html">मार्च</a> <a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/05/blog-post_24.html">1966</a><br /><br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/05/blog-post_15.html">आदरणीय श्री भैरों सिंह जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि</a><br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/05/blog-post.html"> गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया</a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/05/blog-post.html">राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़</a></font>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-80590329837701036072010-05-12T06:41:00.002+05:302010-05-12T06:56:54.731+05:30कहा था कि देखो<font size="3">कहा था कि देखो कहीं दूर गाती<br />जो ऊँचे सितारों से कौन आ रही है ?<br /><br />ये सज्जा फटी सी है चिथड़े लपेटे ,<br />निगाहें उठी पर अकिंचिन सी लगती |<br />कहा था कि देखो कहीं दूर गाती<br />जो ऊँचे सितारों से कौन आ रही है ?<br /><br />ये सज्जा फटी सी है चिथड़े लपेटे ,<br />निगाहें उठी पर अकिंचिन सी लगती |<br /><br />बुझी सी आशा का दीपक लिए जो ,<br />निराश्रित सी कोई चली आ रही है || कहा....<br /><br />किसी ने उदासी में आँखे चुराली ,<br />कितने है उसके सहारा न कोई |<br /><br />झोली नहीं है पसारी है बाहें ,<br />तभी तो हमारी ही ओर आ रही है || कहा....<br /><br />कहती मेरे आंसू की लज्जा किसे है ,<br />भरे जग में मेरा भी कोई अपना है |<br /><br />किसी पर भी कर्जा हो मेरा चुकादे,<br />बीड़ा फिराती चली आ रही है || कहा....<br /><br />कहीं ये हमारी ही तस्वीर नहीं है ,<br />युगों से जो भूली है उभरी गगन में |<br /><br />करें याद आओ पलकें बिछाएं ,<br />अरे ये हमारी ही कौम आ रही है || कहा ....<br />अप्रेल<br /><br />बुझी सी आशा का दीपक लिए जो ,<br />निराश्रित सी कोई चली आ रही है || कहा....<br /><br />किसी ने उदासी में आँखे चुराली ,<br />कितने है उसके सहारा न कोई |<br /><br />झोली नहीं है पसारी है बाहें ,<br />तभी तो हमारी ही ओर आ रही है || कहा....<br /><br />कहती मेरे आंसू की लज्जा किसे है ,<br />भरे जग में मेरा भी कोई अपना है |<br /><br />किसी पर भी कर्जा हो मेरा चुकादे,<br />बीड़ा फिराती चली आ रही है || कहा....<br /><br />कहीं ये हमारी ही तस्वीर नहीं है ,<br />युगों से जो भूली है उभरी गगन में |<br /><br />करें याद आओ पलकें बिछाएं ,<br />अरे ये हमारी ही कौम आ रही है || कहा ....<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/05/73_10.html">17</a> <a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/05/greetings-with-folded-hands-to-avoid.html">अप्रेल</a> <a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/05/blog-post_11.html">1966</a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_19.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज बलवंत सिंह ,गोठड़ा |</a><br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_28.html">मेरी शेखावाटी: नरेगा की वजह से महंगाई में वृद्धी</a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/05/blog-post.html">राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़</a></font>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-3317970595682588762010-05-06T07:25:00.002+05:302010-05-06T07:36:39.535+05:30आग से खेल वे<font size="3">आग से खेल वे दुःख से न पिघल जायेंगे |<br /><br />हमसे आशाओं के राज बताए न गए<br />जो चले अरमान लिए वे जल के राख हुए<br />राख छोडो न कहीं शोले ही दाहक जायेंगे || आग.....<br /><br />हमने तक़दीर के नक्शों में नए रंग भरे<br />गीत जीवन के बजाए स्वर के जाम ढले<br />राग छोड़ी जो वही यमराज बहक जायेंगे || आग...<br /><br />बस्ती ही जाती है जंगल में ये नगरी<br />आज फूलों में बसंती मौसम की गंध भरी<br />हम खिले वीरान गुलसितां चहक जायेंगे || आग.....<br /><br />सहना था वो सहके भी देख लिया<br />हमने क्या जुर्म किया संकल्प लिया<br />ठहरो आँखों के इशारे ही भभक जायेंगे || आग ....<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/05/blog-post_06.html">5</a> <a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/05/identify-value-of-time.html">मार्च</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/05/blog-post.html">1966 </a><br /><br /><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post_5559.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा</a><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_17.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन</a><br /><br /></font>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-59742957621619313562010-05-03T06:57:00.003+05:302010-05-03T07:13:53.536+05:30मिटे तो हुआ क्या<font size="3">मिटे तो हुआ क्या निशानी है बाकी ,<br />कथाकार सोये कहानी है बाकी ||<br /><br /> शमाएँ जलाई रे अँधेरे मिटाए ,<br /> बिछुड़े हों को भी रस्ते बताये |<br /><br />पतंगों ने जल के कहानी बनाई ,<br />अभी किन्तु रस्में पुराणी है बाकी || १ ||<br /><br /> अनोखी कहानी है पतंगों की लेकिन ,<br /> कैसे मिटेंगे इससे हमारे ये दुर्दिन |<br /><br />भस्मी में उनके अंगार हो देखो,<br />अभी ज्वाला यज्ञों की जलानी है बाकी || २ ||<br /><br /> भ्रमों में जो भूले है ज्योति दिखानी ,<br /> आत्मबल की खोई शक्ति जुटानी |<br /><br />राही तो चलते है लेकिन उन्ही को ,<br />प्रतिज्ञा की बातें बतानी है बाकी || ३ ||<br /><br /> छिपाकर न रखना जो संचय हमारे ,<br /> जरा सोचो गहरे तो तुम्ही ना तुम्हारे |<br /><br />समझ में न आये तो यही बात जानो ,<br />अभी कई रातें जगानी है बाकी || ४ ||<br /><a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/05/blog-post_03.html">11</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/05/72_03.html">दिसंबर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_28.html">1965</a><br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_14.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा </a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post_20.html">एक राजा का साधारण औरत द्वारा मार्गदर्शन</a></font>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-12750553003261653522010-04-27T19:54:00.002+05:302010-04-27T20:06:37.707+05:30छुप बैठा कोई रे<font size="3">छुप बैठा कोई रे जीवन सितार में<br />जाने वो कैसे उतरे स्वर के निखार में ||<br /><br />इक रात ऐसी थी गहरे अँधेरे में<br />जागी प्रतिज्ञा मेरी अपनों के घेरे में<br />सपने वे सोये मेरे गहरे विचार में ||<br /><br />प्राण बटोही मेरे युग के प्रभात में<br />चलते रहे है किन्तु ठहर न रात में<br />भटके वे मेरे साथी मीठी बहार में ||<br /><br />कितने सुखी वे दिन थे भुलाये न भूले<br />रखवारी बांहों के रे झूलों में झूले<br />गहरे समंदर तेरे , डूबे पुकार में ||<br /><br />जैसे रखोगे वैसे खुश ही रहेंगे<br />ज़माने को कौम की रे कहानी कहेंगे<br />बिक चुके ऐसे सारे मोती बाजार में ||<br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_27.html">11</a> <a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/04/curd-for-your-better-health.html">दिसम्बर </a><a href="http://taau.taau.in/2010/04/71_26.html">1965</a><br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_17.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन </a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post.html">बीच युद्ध से लौटे राजा को रानी की फटकार</a><a href="http://tips-hindi.blogspot.com/2010/04/blog-post.html">|</a></font>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-33221518056883043652010-04-26T23:06:00.002+05:302010-04-26T23:10:38.444+05:30मन का पंछी दूर गगन में<font size="3">मन का पंछी दूर गगन में टोह लगाता आया रे |<br />इस जीवन में धीरे धीरे गीत किसी ने गया रे ||<br /><br />नदियाँ देखि पर्वत ढूंढे रत्नाकर आए<br />लाख इशारे आने के पर मुझको न भाए<br />उड़ता आया बोलो किसने ये अनुराग जगाया रे ||<br /><br />कैसी गांठे बाँधी थी जो खुलने न पाई<br />रंगत कैसी युग भी बीते घुलने न पाई<br />अंतर पट के मीत किसी ने गहरा रंग लगाया रे ||<br /><br />तीनों लोको में ऐसी जगह मन में न कोई<br />सागर के पंछी को दिखता जहाज न कोई<br />जाएँ कहाँ रे घोर अँधेरी में एक सितारा पाया रे ||<br /><br />लहर चली उमंग उठी नवरंग छाया<br />कुमकुम वर्णी ऊषा उतरी मन को लुभाया<br />स्वागत मेरी मंजिल का इक नया मुसाफिर आया रे ||<br /><a href="http://tips-hindi.blogspot.com/2010/04/blog-post.html">21</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/04/71_26.html">नवम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html">1965</a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_19.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज बलवंत सिंह ,गोठड़ा </a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post_2772.html">शेखावाटी का अंग्रेज विरोधी आक्रोश</a></font>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-23695075153434211512010-04-20T21:07:00.002+05:302010-04-20T21:25:45.315+05:30भूल्या बिसरया भाईडां ने<font size="3">भूल्या बिसरया भाईडां ने आज लवना लागी रे <br />जागी रे जागी जागी दिवळे री जोत जागी रे <br />बरसां सूं पतंगो आयो पांवणो <br /><br />समदर रै किनारे मेळो चालै नी पतंगा रे <br />सुणीजै भागीरथ आया घरां आई गंगा रे <br />बांटां रे घट-घट मे चानणो<br /><br />आज म्हारै मनडे रो सौवणो मोर नाच्यो रे <br />परभातां री प्रीत रो रळियाणो रंग राच्यो रे<br />फ़ूलां सूं छायोडो म्हारो आंगणो<br /><br />तकदीरां रा आंझा दिन आंगळियां गिणीजै रे<br />सतियां रा सन्देशा महारै गीतां मे सुणीजै रे <br />नीठै सूं आयो रे महानै जीवणो<br /><br />खेती महांरी ऊधडी है थांरी रखवाळी रे<br />जगदम्बा माता म्हे थांरै भरोसै रा हाळी रे<br />काळां मे करजो रे मत्ती रीसणो |<br /><br /><a href="http://taau.taau.in/2010/04/70_19.html">15</a> <a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/04/blog-post.html">नवम्बर</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html">1965 </a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2009/01/blog-post_04.html">ज्ञान दर्पण पर इतिहास के लेख </a></font>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-61071887302243396822010-04-19T18:51:00.002+05:302010-04-19T19:06:10.009+05:30सरल है फूलों पे सोना<font size="3">सरल है फूलों पे सोना काम , काँटों से यहाँ |<br />किन्तु देखो किस मजे में जा रहा है कारवाँ ||<br /><br />ये मुसाफिर वे नहीं जिनको सहारा चाहिए<br />सुनलो हमको बंदगी का बस इशारा चाहिए<br />है विदाई की ण रस्मे , प्यार का स्वागत कहाँ ||<br /><br />है न लेखा कौन साथी है या चल दिए<br />दीप का जीवन है केवल नित्य जलने के लिए<br />जलते-जलते हो गई है , सब शिकायत बेजुबाँ ||<br /><br />त्याग तप को युग से मिलती है सदा आलोचना<br />मौन उस पे रह के करते कौम की हम वन्दना<br />इन उमंगो के गवाह , केवल धरा औ आसमाँ ||<br /><br />अलविदा दुनिया के लोगो ठहर हम सकते नहीं<br />दूर मंजिल का निमंत्रण राही पा रुकते नहीं<br />ये चरण ये खेह चाहे , भूल जाएगी जहाँ ||<br /><a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/04/aloevera.html">10</a> <a href="http://taau.taau.in/2010/04/70_19.html">नवम्बर</a> <a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/03/blog-post_13.html">1965</a> <br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_17.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन </a><br /><a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2009/03/gangaur-festival-and-their-importance.html">मेरी शेखावाटी: गणगौर पर्व और उसका लोक जीवन में महत्त्व </a></font>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-56162746758381108782010-04-17T06:12:00.002+05:302010-04-17T06:30:37.126+05:30आजा मौसमे बहार तू कहाँ<font size="3">आजा मौसमे बहार तू कहाँ | ढूंढ़ते तेरे बागवां ||<br />खुशियों के कोनों से आज राग छू गए ,<br />भूली कहानी से प्राण फिर से आ गए |<br />रंग क्या बदलते है थोड़ी देर देखना ,<br />दास्ताँ बनेगी ये धरा स्वयं तू देखना ||<br />गाफिल न ऐसे खेलेंगे आसमां - और ना रहेंगे मेजबाँ || १ ||<br /><br />उछाला है कांटो पे फूलों ने पराग है ,<br />नई जिन्दगी के हाथों में चिराग है |<br />गोद है आभाव की प्रीत थपथपा रहे ,<br />जिन्दगी की दावतों में मौज को बुला रहे |<br />चले जा रहे लहलहाते गुलिस्तां - इंतजारी में बेजुबां || २ ||<br /><br />कदमो के आगे है लम्बी -लम्बी मंजिले ,<br />झूमती नशे में ये छोटी-छोटी महफिले |<br />मेरे दिल की धडकनों पे पाँव धरके देखले ,<br />देखले इस जुए में दांव दे के देखले |<br />जा रहे है कौम के लदे कारवाँ - जिंदादिल है नौजवाँ || ३ ||<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/04/blog-post_13.html">12</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html">सितम्बर</a> <a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/04/blog-post_15.html">1965</a><br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_14.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा </a><br /><a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/03/blog-post_03.html">क्या हुआ जो रात का</a></font>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-39755803066484069512010-04-16T06:54:00.002+05:302010-04-16T07:10:39.094+05:30क्रांति का बजरा<font size="3">क्रांति का बजरा चला सवेरे, धूप ढली घिर आये अँधेरे<br />आज उठेंगे रे , भाग्य के सोये मौन चितेरे<br /><br />हांक उठाई वज्र गिराए , बने बनाये सभी मिटाए<br />निर्दोषों के खून में रंग के , रंग बिरंगे लाल रंगाये<br />मानवता के मिट गए घेरे , ऐसे आये लाल सवेरे ||<br /><br />समता के झांसे में इधर भी , भोग है उड़ता पंख लगाए<br />बेबस जन के ग्रास छिनकर , फिरते है आकर बढ़ाए<br />जगमग करते दीप्त घनेरे , दानवता के क्रूर बसेरे ||<br /><br />यमराजों से जीवन की कोई , भिक्षा मांगे मुर्ख वही है<br />दिल नहीं बदले कुछ नहीं बदला , सत्ता बदली क्रांति नहीं है<br />दुविधाओं के बीच घिरे रे , आशाओं के फूल बिखेरे ||<br /><br />नाम पुराना अर्थ नए दे , जीवन बदले क्रांति यही है<br />सहयोगी जीवन के सपने , मूर्त हुए रे स्वर्ग यही है<br />घोर अँधेरे में दीप भले रे , परमेश्वर की प्रीत पुकारे ||<br /><a href="http://taau.taau.in/2010/04/blog-post_13.html">22</a> <a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/03/blog-post_13.html">अगस्त</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html">1965</a><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_14.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा </a><a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/04/blog-post_15.html">|</a><br /></font>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6171462682672461161.post-71950190401843025782010-04-15T05:30:00.000+05:302010-04-15T05:30:02.418+05:30हमें बहका न कोई लाया है<font size="3">हमें बहका न कोई लाया है आये है हम |<br />तेरी बगिया में नया पाया है जनम ||<br /><br />बड़ी बातों को समझने का अभी होश नहीं<br />कलियों में अभी फूलों का वो जोश नहीं<br />बड़ी शिद्दत से तेरी टहनी पे चटके है हम || तेरी बगिया ....<br /><br />तेरी झोली में कुछ रत्न की दरकार रही<br />जान क्यों ढुंढती हमको तेरी ये आँख रही<br />आये है तेरी देहली पे रमवाने भसम || तेरी बगिया ...<br /><br />बड़े भोले है न हमको किसी से ही गिला<br />भटके हुए जीवन को नवाधार मिला<br />मेरे जीवन में न मिटने के ये तेरे कदम || तेरी बगिया ...<br /><br />आँखों में जो डालो तो चुभेंगे ही नहीं<br />तेरे इंगित बिना दुनिया में झुकेंगे ही नहीं<br />सच कहता हूँ मेरे स्नेह की ऐसी ही रसम || तेरी बगिया ...<br /><a href="http://www.aloe-veragel.com/2010/04/blog-post_13.html">30</a> <a href="http://rajputworld.blogspot.com/2010/03/blog-post_13.html">जुलाई</a> <a href="http://myshekhawati.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html">9615</a><br /><br /><br /><a href="http://www.gyandarpan.com/2010/04/blog-post_11.html">स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा </a></font>Unknownnoreply@blogger.com3