आई हे भाई विदा की सुखद बेला
आए थे हम देश धर्म की आशा को पनपाने
आए थे हम बुझी समाधी का संदेशा पाने
आए थे हम गत वैभव को आगत रूप दिखाने
चार दिवस तक हमने अपने अपने प्रेम खेल को खेला ||
भूलुंठित जो ताज हमारा मस्तक पर है धरना
बिखरा जो सम्मान हमारा उसका कण कण चुगना
शांत काल की बलिवेदी पर फिर से दीप जलाना
एक भाव से एक ध्येय से लगा हमारा मेला ||
सिंह से साहस गर्जन घन से विद्युत क्रोध भभकना
सिखा है सिद्धांत बिना बस तड़फ तड़फ कर जीना
ज्वालामुखियों से सिखा अंतर की आग छिपाना
हमने सिखा विपतियों में अड़ना एक अकेला ||
रुग्णा सी सोती है मेरी पावन संस्कृति माता
वैभव सुख पुष्पों से भूषित झूलों में झोंके खाता
मै निगुण बूंद एक छोटी वह सगुण सिन्धु है लहराता
सुप्त यहाँ है स्वाभिमान वहां माया मोह झमेला ||
कल से देखे कितने हिमगिर टक्कर से बस चूर करे
देखें कार्य शक्ति में मेरे कितने है तूफान भरे
देखे कितनी बाधा संकट थक कर मेरे पांव पड़े
कहाँ विराम जब खड़ी सिरहाने है विप्लव की बेला ||
श्री तन सिंह : १० फरवरी १९४९ सेंट्रल जेल जोधपुर |
आई हे भाई विदा
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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