धन्य बूंदी ! धन्य !!

चित्रपट चल रहा था द्रश्य बदल रहे थे उन्ही द्रश्यो में मैंने देखा
अकेले देवा हाडा को देखा जिसने अपने भुज-बल और युक्ति से बूंदी पर आधिपत्य किया | बांके सूरजमल हाडा को कर्त्तव्य के लिए मरते - मारते देखा| उस राव सुर्जन की स्वामिभक्ति को देखा जिसने रणथम्भोर के किले पर अकबर की महती सेना से १४ वर्ष तक सामना किया परन्तु स्वामी की दुहाई देने और मेवाड़ पर आक्रमण न करने की शर्त को नहीं छोड़ा| मैने रावराजा बुधिसिंह को विपति के कठिन क्षणों में राज्य -भ्रष्ट होते देखा परन्तु उनके पुत्र रावराजा उदयसिंह को देखा जिसने दुर्भाग्य से लोहा लेने के लिए होनहार के छक्के छुडा दिये |मैने रावराजा छत्रसाल हाडा को देखा जिसने धोलपुर बाड़ी पर चम्बल के किनारे दाराशिकोह के विरुद्ध ओरंगजेब के नाक में दम कर दिया था |मैने जालमसिंह हाडा को देखा जिसकी बहादुरी और राजनीतीज्ञता की आज भी भूरी -भूरी प्रशंसा हो रही है |मैने कोटा को देखा और मेरे मुँह से निकल पड़ा धन्य बूंदी ! धन्य !!
स्व. श्री तन सिंह जी, बाड़मेर
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