धरती रा थाम्भा कद धसकै, उल्ट्यो आभो कद आसी ?
माता अब तो साँझ पड़ी है , रुस्यो दिन कद आसी ?
हात्यां रा होदा कद टूटे , घोड़ा न कद धमकास्यूं |
मुछ्याँ म्हारी कद बट खावै , खांडा ने कद खड़कास्यूं |
सुना पड़ग्या भुज म्हारा ए , अरियाँ नै कद जरकासी ||
माता अब तो साँझ पड़ी है , रुस्यो दिन कद आसी ?
म्हारे जितां धरती लेग्या , चाकर आज धणी बणग्या ,
दोखीडाँ रै दुःख सूं म्हारै , अन्तै में छाला पड़ग्या |
आंसू झरती आँखड़ल्यां में , राता डोरा कद आसी ||
माता अब तो साँझ पड़ी है , रुस्यो दिन कद आसी ?
गाठी म्हारी जीभ सुमरता , कान हुआ बोला थारै ,
दिन पलट्यो जद मायड़ पल्टी, बेटा नै कुण बुचकारै |
माँ थारो तिरशूल चलै कद , राकसडा कद आरडासी ||
माता अब तो साँझ पड़ी है , रुस्यो दिन कद आसी ?
थारै तो लाखां बेटा है , म्हारी मायड़ इक रहसी ,
हूँ कपूत जायो हूँ थारै , थनै कुमाता कुण कहसी |
अब तो थारी पत जावै है , बाघ चढ़यां तू कद आसी ||
माता अब तो साँझ पड़ी है , रुस्यो दिन कद आसी ?
स्व. श्री तन सिंह जी : १६ अगस्त १९५९ :
धरती रा थाम्भा कद धसकै
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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