स्व.पु.श्री तनसिंह जी: एक अद्भभुत व्यक्तित्व का परिचय

स्व.पु.श्री तनसिंह जी: एक अद्भभुत व्यक्तित्व का परिचय
वि.सं.१९८० में बाड़मेर जिले के गांव रामदेरिया के ठाकुर बलवंत सिंह जी महेचा की धर्म पत्नी मोतिकंवरजी के गर्भ से तनसिंह जी का जन्म अपने मामा के घर बैरसियाला गांव में हुआ था वे अभी शैशवावस्था में अपने घर के आँगन में चलना ही सीख रहे थे कि उनके पिता मालाणी के ठाकुर बलवंत सिंघजी का निधन हो गया और चार वर्ष से भी कम आयु का बालक तनैराज अपने सिर पर सफ़ेद पाग बाँध कर ठाकुर तनैराज हो गया | मात्र ९०रु वार्षिक आय का ठाकुर | भाग्य ने उनको पैदा करके पालन-पोषण के लिए कठिनाईयों के हाथों सौप दिया |
घर की माली हालत ठीक न होने के बावजूद भी श्री तनसिंह जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बाड़मेर से पुरी कर सन १९४२ में चौपासनी स्कूल जोधपुर से अच्छे अंकों के साथ मेट्रिक परीक्षा पास कर सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी होने का गौरव प्राप्त किया,और उच्च शिक्षा के लिए पिलानी चले आए जहाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करने बाद नागपुर से उन्होंने वकालत की परीक्षा पास कर सन १९४९ में बाड़मेर आकर वकालत का पेशा अपनाया,पर यह पेशा उन्हें रास नही आया | 25 वर्ष की आयु में बाड़मेर नगर वासियों ने उन्हें बाड़मेर नगर पालिका का अध्यक्ष चुन लिया और 1952 के विधानसभा चुनावों में वे पहली बार बाड़मेर से विधायक चुन कर राजस्थान विधानसभा पहुंचे और 1957 में दुबारा बाड़मेर से विधायक चुने गए | 1962 व 1977 में आप बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए | 1962 में तन सिंघजी ने दुनिया के सबसे बड़े और विशाल बाड़मेर जैसलमेर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव मात्र एक जीप,कुछ साथी,सहयोगी स्वयम सेवक,कार्यकर्त्ता,किंतु अपार जन समूह के प्यार और समर्थन से मात्र 9000 रु. खर्च कर सांसद बने |
1979 में मध्यावधि चुनावों का फॉर्म भरने से पूर्व अपनी माताश्री से आशीर्वाद लेते समय 7 दिसम्बर 1979 को श्री तनसिंह जी ने अपनी माता की गोद में ही अन्तिम साँस ली |
पिलानी के राजपूत छात्रावास में रहते हुए ही श्री तनसिंह जी ने अपने भविष्य के ताने-बाने बुने | यहीं उनका अजीबो-गरीब अनुभूतियों से साक्षात्कार हुआ और समाज की बिखरी हुयी ईंटों से एक भव्य-भवन बनाने का सपना देखा | केवल 22 वर्ष की आयु में ही उनके हृदय में समायी समाज के प्रति व्यथा पिघली जो " श्री क्षत्रिय युवक संघ" के रूप में निश्चित आकार धारण कर एक धारा के रूप में बह निकली |
लेकिन अन्य संस्थाओं की तरह फॉर्म भरना,सदस्यता लेना,फीस जमा करना,प्रस्ताव पारित करना,भाषण,चुनाव,नारेबाजी,सभाएं आदि करना श्री तन सिंह जी को निरर्थक लगी और 22 दिसम्बर 1946 को जयपुर के मलसीसर हाउस में नवीन कार्य प्रणाली के साथ "श्री क्षत्रिय युवक संघ " की विधिवत स्थापना की और उसी दिन से संघ में वर्तमान संस्कारमयी मनोवैज्ञानिक कार्य प्रणाली का सूत्रपात हुवा | इस प्रकार क्षत्रिय समाज को श्री तनसिंह जी की अमूल्य देन "श्री क्षत्रिय युवक संघ " अपनी नई प्रणाली लेकर अस्तित्व में आया |
राजनीती में रहकर भी उन्होंने राजनीती को कभी अपने ऊपर हावी नही होने दिया | क्षत्रिय युवक संघ के कार्यों में राजनीती भी उनकी सहायक ही बनी रही | सन 1955-56 में विवश होकर राजपूत समाज को राजस्थान में दो बड़े आन्दोलन करने पड़े जो भू-स्वामी आन्दोलन के नाम से विख्यात हुए,दोनों ही आन्दोलनों की पृष्ठभूमि में क्षत्रिय युवक संघ की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी |
स्व.श्री तनसिंह जी की ख्याति एक समाज-संघठक,कर्मठ कार्यकर्त्ता,सुलझे हुए राजनीतीज्ञ,आद्यात्म प्रेमी,गंभीर विचारक और दृढ निश्चयी व्यक्ति के रूप में अधिक रही है किंतु इस प्रशिधि के अतिरिक्त उनके जीवन का एक पक्ष और भी है जिसे विस्मृत नही किया जा सकता | यह एक तथ्य है कि एक कुशल प्रशासक,पटु विधिविज्ञ,सजग पत्रकार और राजस्थानी तथा हिन्दी भाषा के उच्चकोटि के लेखक भी थे | पत्र लेखन में तो उनका कोई जबाब ही नही था अपने मित्रों,सहयोगियों,और सहकर्मियों को उन्होंने हजारों पत्र लिखे जिनमे देश,प्रान्त,समाज और राजपूत जाति के अतीत,वर्तमान और भविष्य का चित्र प्रस्तुत किया गया है | अनेक सामाजिक,राजनैतिक और व्यापारिक कार्यों की व्यस्तता के बावजूद उन्होंने साहित्य,संस्कृति और धार्मिक विषयों पर लिखने के समय निकला |
श्री क्षत्रिय युवक संघ के पथ पर चलने वालों पथिकों और आने वाली देश की नई पीढियों की प्रेरणा स्वरूप स्व.श्री तनसिंह जी एक प्रेरणादायक सबल साहित्य का सर्जन कर गए | उन्होंने अनेक पुस्तके लिखी जो जो पथ-प्रेरक के रूप में आज भी हमारा मार्ग दर्शन करने के लिए पर्याप्त है |
1-राजस्थान रा पिछोला
2-समाज चरित्र
3- बदलते द्रश्य
4- होनहार के खेल
5- साधक की समस्याएं
6- शिक्षक की समस्याएं
7- जेल जीवन के संस्मरण
8- लापरवाह के संस्मरण
9-पंछी की राम कहानी
10- एक भिखारी की आत्मकथा
11- गीता और समाज सेवा
12- साधना पथ
13- झनकार( तनसिंहजी द्वारा रचित 166 गीतों का संग्रह)
श्री तनसिंहजी द्वारा लिखित पुस्तकों पर पुरा विवरण अगले लेख में |
कैसा लगा स्व.तनसिंह जी व्यक्तित्व अपनी राय जरुर दे |


Reblog this post [with Zemanta]

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


Comments :

11 comments to “स्व.पु.श्री तनसिंह जी: एक अद्भभुत व्यक्तित्व का परिचय”
pagdandi said...
on 

shabd nahi h hokam.inki tarif ke liye....

Unknown said...
on 

Hum Is admi ke bahut bade fan hai, kaas aisa admi aaj bhi hota!

Unknown said...
on 

तन सिंह जी कोई व्यक्ति नहीं बल्कि अवतार थे,समाज के के उन्होंने सब कुछ समर्पित कर दिया!उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहेगा.!

KRISHAN GOPAL SINGH SHEKHAWAT said...
on 

स्व.पु.श्री तनसिंह जी को
शत शत नमन

SrbhawaniSingh said...
on 

perhapes i am late now site

Unknown said...
on 

Rajwat ro thu sehro, sub sura sirmod
Dharni par dhaka pade, rang Taneraj Rathod.....

Swami vivekanand of Rajput samaj......sat sat naman........

Unknown said...
on 

Rajwat ro thu sehro, sub sura sirmod
Dharni par dhaka pade, rang Taneraj Rathod.....

Swami vivekanand of Rajput samaj......sat sat naman........

SrbhawaniSingh said...
on 

sat vanden jinhone hamere liye kashtriya yuvak sangh ki sthapana ki

aj nhi to kal all rajput ek kashriya flag ke niche sir zhukayage
jai sangh shakti

kamsa said...
on 

I think Tan Singh ji was incarnation of Veer Durgadas ji, he was great leader, motivator, iconoclastic personality

Unknown said...
on 

hkm kabhi SHRRE LOKENDRA SINGH KALVI ke bare me bhi likho

Journalist Shivraj Singh Sodha said...
on 

wonderful & great !

Post a Comment

 

widget
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
www.blogvani.com

Followers