छुप बैठा कोई रे
मन का पंछी दूर गगन में
भूल्या बिसरया भाईडां ने
सरल है फूलों पे सोना
आजा मौसमे बहार तू कहाँ
क्रांति का बजरा
हमें बहका न कोई लाया है
राह मिल गई साथ हो गए
मैं बनजारा हूँ
कितनी आग भरी तेरी प्यास में
अँधेरा है कितना और दीप कितने
नए आने वालो
जागरण की वेला का
होनहार के खेल - 5
होनहार के खेल -4
होनहार के खेल -3
होनहार के खेल -2
मन का पंछी दूर गगन में
भूल्या बिसरया भाईडां ने
सरल है फूलों पे सोना
आजा मौसमे बहार तू कहाँ
क्रांति का बजरा
हमें बहका न कोई लाया है
राह मिल गई साथ हो गए
मैं बनजारा हूँ
कितनी आग भरी तेरी प्यास में
अँधेरा है कितना और दीप कितने
नए आने वालो
जागरण की वेला का
होनहार के खेल - 5
होनहार के खेल -4
होनहार के खेल -3
होनहार के खेल -2
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