मग भूल गया है जो उसका नहीं कोई रे
बेदर्द जमाना है ,कोई न किसी का रे
आँखों में अन्धियारी, मग ढूंढे नहीं मिलता
आँखे है रोशन जिससे, आँखों से नहीं दीखता
अंधे की लकडी है, मेरा कोई नहीं रे || मग---
पर ठहर नहीं सकता ,बढ़ने को जो आया
आँखों में आंसू तो क्या,दिल खुलकर मुस्काया
अंगारों से खेला था भय फूलों से कैसा रे || मग---
इच्छाएँ जला करती,अरमान उठा करते
तूफां के थपेडों से , मांझी न डरा करते
जो पथ का दर्शक था -पथ भूल गया रे || मग---
स्व.श्री तन सिंह जी : २४ सितम्बर १९५२
मग भूल गया है जो
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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