पा रहे है क्यों सजा ?
भूली हुई को याद कर ,चेतना के स्वर बजा |
बीतती ही जा रही द्वार पर शताब्दियाँ
खटखटाते हार कर ये सो गई कहानियां
मेहनतो में क्या बचा | भूली हुई ..........
क्या मेरे गुनाह थे कि पाक गई पहचान क्यों ?
क्या जबाब दूँ तुम्हे निराश है उम्मीद क्यों ?
तक़दीर ही रहा नचा | भूली हुई ..............
ऐसे तो हम कभी न थे कि यों भुलाये जा सके
त्याग को लिया दिया अनुराग ही न पा सके
दिल की धड़कने जगा | भूली हुई ............
काश जो पत्थर हुए न यो कभी पिघलते रे !
पिघलते तो ऐसे नहीं ज़माने ही बदलते रे !
इंसान की क्या ये सजा ? भूली हुई ........
आग जो जली कभी छिप गयी है राख में
कारवां की खेह थी जो गिर गई है आँख में
साथ का मिला सजा | भूली हुई ..............
स्व.श्री तन सिंह जी : १७ मार्च १९६२
पा रहे है क्यों सजा ?
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मार्मिक भाव, मन को छू गये आपके शब्द।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
बहुत लाजवाब.
रामराम.