बिछुडे हुए बुलाकर , मेले लगा रहे है |
अपने करों से अपनी तक़दीर बना रहे है |
अंत:करण में गहरे गोते लगा रहे है |
सपने हमारे जग को समझाते जा रहे है || अपने ....
हर बार जल जले थे इतिहास गा रहे है |
हर बार कारवां भी बनते जा रहे है || अपने .......
माने तो मर्जी तेरी , हम गैर तो नहीं है |
अपनी ख़ुशी लुटाकर तुमको बसा रहे है || अपने ...
जंगल की राख छानी,राते जगा रहे है |
हम कौम के है बन्दे , रस्ते बना रहे है || अपने ....
भूखे है स्नेह के हम , किन्तु कभी न मांगे |
प्याले तेरी नफरत के पीते ही जा रहें है || अपने....
स्व.श्री तन सिंह जी : १६ जनवरी १९६१
बिछुडे हुए बुलाकर
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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