जब गम की घटाएँ छाए कुछ हंस के रो देना |
जो मुंह को दिखाओ तो आंसू को छिपा देना ||
मेरी बगिया के फूलो से कुछ हँसियाँ ले लो तुम |
मेरे दिल के दरिया से कुछ मौजे ले लो तुम ||
कुछ मांग सको तो मांगो डर हो तो चुरा लेना ||
तेरे दिल के घावों को देखा है रक्त बहाते |
तेरी पागल मस्ती को अपनी हस्ती लुटाते |
इस गम की महफ़िल पर चादर को बिछा देना ||
कभी हंस के मिलेंगे हम दुःख दर्द की बात करेंगे |
इस स्नेह की ठठरी का कभी अभिषेक करेंगे |
तब तक रे फकीरों की सुध बुध न भुला देना ||
कुछ नाराज तो हो बंधू ! टूक ठहरो मनाऊंगा |
जब तक न मनाऊंगा कुछ और रुलाऊंगा |
इस बन्दे की फरियाद घर घर में सुना देना ||
स्व.श्री तन सिंह जी : २जुन १९६० ;
जब गम की घटाएँ छाए कुछ हंस के रो देना
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स्व. तन सिंह जी की रचनाऐं पढ़कर आनन्द आ जाता है, आपका आभार.