चित्रपट चल रहा था
दृश्य द्रुत गति से बदलते जा रहे थे | मुझे याद भी नहीं रहे कितने वीर पुरुष ,कितने महापुरुष और कितने दिव्य पुरुष आये और चले गए | बीच में कुछ कुछ दृश्य फिर भी याद है | मुझे माणिकराय से लेकर पृथ्वीराज तक की वंशपरम्परा याद है |उनकी तलवारे याद है, उनका बल याद है, उनकी हिम्मत याद है , उनकी उदारता याद है | मुझे बप्पराज याद है जिसने अपने जीवन में १८८ लड़ाईयां जीती | संभार,अजमेर और नाडोल के प्राचीन गौरव और गौरव गाथाएँ याद है | मुझे एक बीसलदेव याद है जिसने एक विद्याधर की सहायता से शाकम्भरी पर आधिपत्य जमा लिया था | मुझे दूसरा बीसलदेव भी याद है जिसका राज्य विस्तार नर्मदा नदी तक था और जिसने कथाकोट तक अपनी विजय यात्राएं पूरी की | भोज का बहनोई और राजमती का पति तीसरा बीसलदेव भी याद है और वह चोथा बीसलदेव भी याद है जिसका राज्याधिकार दिल्ली पर हुआ था , जिसने अनेक लड़ाईयां लड़ भारत को यवन शून्य कर दिया था | उसी का नाट्य शाला के रूप में बनाया हुआ अजमेर का ढाई दिन का झोंपडा याद है | मुझे अजमेर बसाने वाला अजयराज भी याद है जिसके पराक्रमी पुत्र अर्णोराज से सोमेश्वर का जन्म हुआ | सिंध के आक्रमण करने वाले तुर्क मुझे याद है और यह भी याद है कि अर्णोराज से कितनी बुरी तरह पिट कर भागे थे | आनासागर उस विजय की अमर यादगार के रूप में आज भी लहरा रहा है | मुझे अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज भी याद है जिसका राज्य विस्तार लाहोर से विन्ध्याचल तक था , जिसके हाथों अनेक बार शहाबुद्दीन गौरी को धुल चाटते देखा | उसका चामुण्डराय जैसा भीमकाय सामंत भी याद है और मुझे याद है कि मेरे मुंह से कितनी बार निकल पड़ा था -वाह अजमेर ! वाह !! धन्य राजस्थान ! धन्य !! ;
वाह अजमेर ! वाह !!
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धन्य भारत ! धन्य !!
बहुत ओजस्वी और सारगर्भित रचना.
रामराम.
बहुत लाजवाब पोस्ट.
रामराम.