वाह करौली ! वाह !!

चित्रपट चल रहा था द्रश्य बदल रहे थे उन्ही द्रश्यों में
मैंने किले देखे | विजयपाल को सन १०४० में बयाना का किला बनाते देखा जिसमे उसने गजनी के अबुबक्र बुखारी का तीखी तलवारों से स्वागत किया | मैंने परम भट्टारक महाराजाधिराज तवनपाल को सन ११५८ में तवनगढ़ बनाते देखा और धर्मपाल को धोलपुर का किला बनाते देखा | मैंने कुंवरपाल से कुंवरगढ़ और अर्जुनपाल से गढ़कोट का किला बनाते देखा | उसी अर्जुनपाल से युद्ध में मंडरावल के मिंया मक्खन को जान बचाकर भागते देखा | सन १३४८ में करौली शहर को बनते देखा | पूर्वजों की खोई हुई भूमि को विदेशी शासकों से मुक्त होते देखा | मैंने प्रथ्विपाल को देखा जिसने ग्वालियर तक अपनी धाक जमाई थी | चारवानी के अफगानों को तवनगढ़ पर आक्रमण करते देखा और प्रथ्वीपाल के हाथों तोडे गए एक बाँध से अफगान सेना को डूबते और घिघियाते देखा | रजोगुणीय सरोवर में अत्पन्न सतोगुणीय,कमलपुष्प महाराजा चंद्रपाल को योगाभ्यास और अध्यवसाय करते देखा | मैंने दौलताबाद के किले को फतह करते हुए महाराजा गोपालदास को देखा और उसी हाथो से सन १५६६ में आगरे का किला बनते देखा | मैंने एक और गोपालदास को देखा जिसके प्रबल पराक्रम का लोहा दिल्ली का लाल किला भी मानता था | मैंने अहमदशाह अब्दाली को सन १७५७ में दिल्ली पर तीसरा आक्रमण कर मथुरा के मंदिरों को नष्ट करते देखा ; तब मैंने उसी गोपालदास को मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध द्वार से स्वर्ग जाते देखा | मैंने तुरसम्पाल की तलवारों से कूबारी नदी का पानी लाल होते देखा | मैंने माणकपाल द्वारा करौली के आक्रामक रोडजी सिंधिया को मरते देखा और उसकी सेना को भागते देखा | मैंने मदनपाल के सुशासन को देखा और भंवरपाल को शेरों से खेल खेलते देखा और मेरे मुंह से निकल पड़ा -वाह करौली ! वाह !!
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Comments :

1
Unknown said...
on 

wow

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