कुछ संभल सको तो सम्भलो रे |
दिन बीतेंगे जो बीत चुके कुछ कहना है तो कहलो रे |
तेरी नगरी में कोई आएगा |
तेरे मन के एकाकीपन में
पदचाप हमारी आएगी अब
बिन न्योते ही हम आ पहुंचे ,कुछ जगह तो करलो रे |
दिन बीतेंगे जो बीत चुके ...................................||
सुधि लेना हो परिजन की तो
ले लो ! बेला बीत रही है
अंगारे तो बरसेंगे पर आँखों से कहो थोडा बहलो रे |
दिन बीतेंगे जो बीत चुके ...................................||
मीत तुम्हारे थे लाखों पर
प्रीत नहीं निभ पायेगी
अब झोली हमारी भरने को कुछ फूल चुनो तो चुन लो रे |
दिन बीतेंगे जो बीत चुके ...................................||
तुम्हे बुलाती परम्पराएं
पदचिन्ह तुम्हारे उभरेंगे
बनजारों के साथ चलो तो केशरिया रंग कर लो रे |
दिन बीतेंगे जो बीत चुके ...................................||
स्व. श्री तन सिंह जी : २० मार्च १९६२
सांड तो लड अलग भये : बछडे भये उदास
पुनरागमन
कुछ संभल सको तो
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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मीत तुम्हारे थे लाखों पर
प्रीत नहीं निभ पायेगी
अब झोली हमारी भरने को कुछ फूल चुनो तो चुन लो रे |