किसने मुझे कहा था , धोखा कभी न दूंगा |
मैंने कहाँ कहा था , तेरा प्यार ही मै लूँगा ||
जिसने दिया है जो भी , हंसकर लिया है मैंने
प्याले पिए जहर के , तेरे समझ के मैंने
अपने नहीं तो सोचा , गैरों को सहूंगा |
किस्मत के दांव थे हिम्मत से मैंने खेले
संचय लुटा के मैंने , जग में लगाये मेले
पाया कभी किनारा , बातें तभी करूँगा ||
बातों के तम्बुओं में , कब से लगाया डेरा
इतना बतादे मुझको , तक़दीर का या तेरा
दिल में फफोले होंगे , फिर भी तो मै जिऊंगा ||
बाकी रहा हो धोखा ,आंधी बुलाने जाना
मुर्दे गड़े कहीं तो , कब्रों को भी जगाना
दीपक हूँ कौम का मै , ज्योति लिए जलूँगा ||
13 मार्च 1964
बङगङां बङगङां बङगङां -3
किसने मुझे कहा था , धोखा कभी न दूंगा
Labels:
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छी रचना!
मुर्दे गड़े कहीं तो , कब्रों को भी जगाना
दीपक हूँ कौम का मै , ज्योति लिए जलूँगा.nice