अपने ही सपनो का मै तो बना रे सिपाही |
कोई सराहे कोई बने हम राही || मै तो .....
संघ के लिए ही मैंने सुख दुख त्यागा रे
सोये सारा जग मेरा तन मन जागा रे
अपनी तक़दीर का मै खुद ही गवाही || मै तो ....
प्रेम के भावों की मै तो बेल बढ़ाऊंगा
भूलें हो भटके हो चाहे गले से लगाऊंगा
अजब नशे में मेरी भरी है सुराही || मै तो ....
अपने आप को उठाना सारी कौम को उठाना है
अँधेरे में मुझे नई ज्योति दिखाना है
दोष लगे चाहे मिले वाह वाही || मै तो ....
धूप छाँव हानि लाभ दुनियां में जोड़ी है
एक को छोडूंगा तो दूसरी निगोड़ी है
आज की फकीरी कल की शहंशाही || मै तो ....
9 अक्तूबर 1964
वह राम ही था | ज्ञान दर्पण पर
साथी संभल-संभल कर चलना
अपने ही सपनो का
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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धूप छाँव हानि लाभ दुनियां में जोड़ी है
एक को छोडूंगा तो दूसरी निगोड़ी है
आज की फकीरी कल की शहंशाही ||
लाजवाब रचना पढवाने के लिये आभार आपका.
रामराम.