जाग चेतना - जाग री जाग री !
ज्ञान रश्मि को धरती पर ओ लाने वाली
कर्मयोग का ओ पाठ पढ़ाने वाली - सत्य साधना || जाग री ......
अहंकार के बादल छाये , कुंठित उसमे ज्ञान हमारा
जिज्ञासा के बंधन खोलो , भेंट करो उपहार तुम्हारा
ओ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने वाली
प्राणों में फिर अमृत छलकाने वाली - भक्ति भावना || जाग री ....
कहीं यज्ञ की ज्वाला धधकी , थाली में शाकल्य नहीं है
जीवन भर संचय को भटके , मन में संतोष नहीं है
ओ ! वामन की झोली भरने वाली
ओ ! दाता का श्रेय दिलाने वाली - त्याग प्रेरणा || जाग री ....
कितने जगमग दीपक जलते , आँख नहीं तो व्यर्थ जले है
करने आये कर न सके तो , जीवन तरुवर व्यर्थ फले है
अरी नींव ओ ! बोझ उठाने वाली
जड़ चेतन को ओ ! राह दिखाने वाली - धर्म धारणा || जाग री ....
श्रद्धा -संशय स्नेह घृणा के , बीच झूलता जीवन झुला
धरा न छोड़ी स्वर्ग न देखा , बीच गगन में उड़ना भुला
व्यर्थ द्वंद के ओ ! भेद भुलाने वाली
एक सूत्र में एक राह पे लाने वाली - सुप्त एकता || जाग री ....
९ जनवरी १९६४
उत्तरा की मांग
जाग चेतना
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Jhankar,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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