गहरी गडी कबसे खड़ी याद स्वपन की
घुट रही है जिन्दगी में आह सत्य की
कोई चाहे तो खुशियों से खेले , नौ विधियों की संपदा ले ले
चाहे नीची झुकालें , थोड़े प्रभु के इशारे समझले
कैसे भुझे यत्न किये आग लगन की -२ || घुट ....................
कैसे पढ़लूँ रे मौन की भाषा , खोकर धीरज कड़ी दुष्ट आशा
कितना लाइ है मेरी हथेली , क्या सुलझा सकेगी पहेली
हूक उठी दांव लेने हारे समर की -२ || घुट........................
किसको अंतर का भेद बताएं , कैसे अपनों को अपना बताएं
कैसे धरती पर सपने सुलाएं जब हो दुविधा की पाँख लगाएं
नीचे खड़े थाह लेनी ऊँचे गगन की -२ || घुट......................
कभी आएगा निश्चित सवेरा , धीरज मेरा है केवल सहारा
कभी पुष्पों से थाली भरेगी , दुनियां आएगी अर्चन करेगी
दे दूँ उसको बांह जिसके हाथ जगत की -२ || घुट...........
१० जन . १९६४
सुख और स्वातन्त्र्य -3
गहरी गडी कबसे खड़ी याद स्वपन की
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बढ़िया रचना!