वंदन मेरी ध्वजा के आधार स्तम्भ रे |
जीवन्त प्रेरणा के तुम यज्ञकुंड रे ||
युग युग के पुण्य की तुम
स्वातन्त्र्य अर्चना हो
शोषित जनों के अंतिम निश्चय प्रचंड रे ||
जब भी जली शमाएँ
कम भी न थे पतंगे
मेरी परम्परा की ज्योति अखंड रे ||
नव जागरण की वेला
के स्वप्न हो उजागर
साकार कल्पना के तुम मेरुदंड रे ||
हम सत्य के पथिक है
श्रद्धा के दंड तुम हो
जागृत रहे हमारी निष्ठां अनन्त रे ||
26 April1964
वह राम ही था | ज्ञान दर्पण पर
साथी संभल-संभल कर चलना
वंदन मेरी ध्वजा के
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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"सुन्दर रचना......."
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