बाँध होता तो बह जाता रे - सुनलो रे मेरी माँ
तेरे नाम पे दिल को बहलाता रे |
ज्योति तुम्हारी आशा थी मेरी , उसकी लगन से दुनियां को हेरी
चलने लगा तो मै भी जवाँ था , जलने लगा मेरा जीवन रवां था
सुनलो रे मेरी माँ - कहीं अंत होता तो रुक जाता रे ||
निर्बल जनों ने हंसी उड़ाई , चोरों ने मेरी लुटी कमाई
तेरे इशारों पे चलता गया मै , किस्मत की ठोकर सहता गया मै
सुनलो रे मेरी माँ- कोई गांठ होती तो सुलझाता रे ||
घाव पड़े तो मरहम लगाना , भटकूँ कभी तो रस्ते लगाना
गहरे समन्दर का जो मांझी बनाया , मौसम को क्यों नहीं साथी बनाया
सुनलो रे मेरी माँ - यदि राख होता तो ढह जाता रे ||
लाज है किसकी तेरी या मेरी , जीत भी किसकी मेरी या तेरी
काम भी तेरा मै भी हूँ तेरा , मै हूँ लहर तू मेरा किनारा
सुनलो रे मेरी माँ- कभी देख लेता तो समझाता रे ||
13 मार्च 1964
वह राम ही था | ज्ञान दर्पण पर
साथी संभल-संभल कर चलना
बाँध होता तो बह जाता रे
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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Sanvedanao se sanjoi hui is abhivyakti ke liye dhanywad!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन रचना.
बहुत जबरदस्त रचना, आभार.
रामराम.