प्रतिफल कहानी चल रही है , चाहे प्यार हो परिहास हो |
मुझे जिन्दगी की प्यास हो ||
चाहे रूठ गया बसंत भी , चाहे आ रहा हो अंत ही
कैसे कह सकूँगा चाह कर , मेरी चाह है अनन्त सी
जब बोलता गुनाह हो , तो मौन में विश्वास हो ||
क्या सार है आदर दिया , या तोड़कर ही मिटा दिया
हर बार झूमेगी डालियाँ , और अर्चना की भी थालियाँ
बेकार चढ़ना शीश पर , जब लुटने का भी त्रास हो ||
रस रूप गुण के पारखी , कुछ शब्द के है सारथी
न थक रहे है बखान से , मै थक चूका हूँ थकान से
मै पुष्प हूँ मेरी व्यथा , कोई जान ले अवकाश हो ||
ऊँचा खिलूँ में व्योम में ,समिधा बनूँ मै होम में
आँचल कोई फैला हुआ , या ज्योतिचरण आता हुआ
आँचल में सिमटा प्यार हो , चरणों में पुण्य प्रकाश हो ||
26 फरवरी 1964
स्वर्ग में स्वागत -1
प्रतिफल कहानी चल रही है
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत सुंदर.
रामराम.