आओ जरा से बैठकर ,चेतना नई भरे |
सोचना शुरू करें ||
किस जगह से गिर के बंधू कहाँ रुक सकेंगे हम
बिछुडे हुओं का संगठन , क्या आज कर सकेंगे हम ?
है करना वो न कर सके तो जिन्दगी क्या करें || सोचना .........
ऊँचा करो यह शीश अपना , जो न झुक सका कभी
जो झुक गए है आज उनको, लाज आएगी कभी |
थातियों को बेचकर हम याचना कैसे करें || सोचना ......
क्या हुआ जो मेहनत का फल हमें मिला नहीं
जो मिल गए उससे चमन , तक़दीर का खिला नहीं
बीते हुए युगों की आज कीमत अदा करें | सोचना .......
आंसू बहा न बंधू मेरी , परम्परा शरमाएगी
कदम बढा धरा तेरे , बोझ से झुक जायेगी
पहचान तेरे रूप को कल्पना नई करें || सोचना ....
स्व. श्री तन सिंह जी : ११ सितम्बर १९५७
आओ जरा से बैठकर
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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क्या हुआ जो मेहनत का फल हमें मिला नहीं
जो मिल गए उससे चमन , तक़दीर का खिला नहीं
बीते हुए युगों की आज कीमत अदा करें |..
सत विचार..