हृदय की आग धधका कर कोई जलता है परवाना |
शमा के क्रूर इशारों पर कोई मिटता है दीवाना ||
यहाँ मरना ही जीवन है नहीं जीते है चोरी से ,
यहाँ के काम नहीं बनते कभी भी घूसखोरी से |
यहाँ जिन्दे वही है जो मरे है सीना जोरी से ,
यही है आसमां और मेरी धरती का अफसाना |
हृदय की आग धधका कर कोई जलता है परवाना |
कोई कहते है प्यालों में तुम्ही मदहोश होते हो ,
कोई कहते बहारों में हमारा ध्यान खोते हो |
तभी जगने जगाने के समय तुम आज सोते हो ,
हम कहते नहीं सोना इसी नाम सुस्ताना |
हृदय की आग धधका कर कोई जलता है परवाना |
उठने का हमें अब तो जमाने का इशारा है ,
सिपाही को यही सेनापति का युद्ध नारा है |
बहे बिन रह नहीं सकती ये बलिदानों की धारा है ,
कभी मुर्दों में उठा करता कोई जीने को मरदाना ||
हृदय की आग धधका कर कोई जलता है परवाना |
स्व. तन सिंह जी : २७ जुलाई १९५३ फुलेरा से कुचामन रेल में |
हृदय की आग धधका कर
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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उठने का हमें अब तो जमाने का इशारा है ,
सिपाही को यही सेनापति का युद्ध नारा है |
बहे बिन रह नहीं सकती ये बलिदानों की धारा है ,
कभी मुर्दों में उठा करता कोई जीने को मरदाना ||
हृदय की आग धधका कर कोई जलता है परवाना |
उनकी कलम को शत शत नमन राज नितिग्य की कलम से ऐसी रचना पढ कर खुशी हो रही है आभार्
बहुत खुब.. मुर्दे को भी जगा दे..
jai ho !