अरमानो की दुनिया सदा जले ,यदि कभी बुझे तो आंसू से ना |
भूचाल उठे भृकुटी तनते दिग्पाल इशारों में आते थे |
बल न्याय से मस्तक ऊँचा था , अन्यायी से झुक जाऊं ना ||
संस्कृति के अंकुर खोज खोज मरुभूमि में बाग़ लगाया है |
तक़दीर का पाला चाहे पड़े , पर प्रेम की सरिता सूखे ना ||
जीवन के दिन में फूलों को चुग-चुग नैवेध चढाता हूँ |
मै मौत से क्षण भर रुक जाऊँ,पर गिरुं कभी ठोकर से ना ||
संकल्प का सागर संघ किश्ती खेवट मन कर्म की पतवारें |
तूफान तो मेरे साथी है मै रुकूँ विरोधी लहर से ना ||
मग मैंने चुना सोचा समझा पर निकला काँटों से भरा हुआ |
चलने की तमन्ना बनी रहे , पर गिरुं कभी दुर्बल हो ना ||
स्व.श्री तन सिंह : बाड़मेर १८ मार्च १९५१
अरमानो की दुनिया
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत सुन्दर कवितायें हैMं तन सिह जी को नमन श्रद्धाँजली आभार्