जब महाकाल संघर्ष मचाता

जब महाकाल संघर्ष मचाता वर्तमान से ,वर्तमान से |
जीवन पतंग बलि होता है तब शान से ||

कहता यूनान सिकंदर बड़ा वीर था ,
भारत कहता उसका मदचूर पड़ा था |
शेरशाह मुट्ठी भर धान के लिए अडा था ,
जैता कुम्पा वीरों ने उसे पछाड़ा था |
भारत प्रांगन जब बज उठता है युद्ध गान से , युद्ध गान से ||

हल्दी घाटी में जब एक बार बम्ब मचा था ,
हर हर नारों से नभ धरती आन धंसा था |
पूंछूं मै बता सिर वाला कौन बचा था ,
रक्तिम रणखेत में केशरिया रंग रचा था |
मद्चुर शत्रु चुनौती देता आन बान से , आन बान से ||

मेरे समाज की काल रात्रि में सूर्य उगा है ,
द्वेष दंभ का भूत भयंकर तभी भगा है |
झूंठे जग में इक संघ बंधू बिन कौन सगा है ,
तन मन धन जीवन एक रंग रंगा है |
फर फर फर फहराता कहता जियो शान से , मरो मान से ||
स्व.श्री तन सिंह : ९ अगस्त १९५० राजपूत होस्टल ,बाड़मेर |

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Comments :

4 comments to “जब महाकाल संघर्ष मचाता”
विनोद कुमार पांडेय said...
on 

वाह,
बहुत सुंदर कविता.
शब्दों का अद्भुत प्रयोग..धन्यवाद

समयचक्र said...
on 

शब्दों का अद्भुत प्रयोग..सुंदर कविता..धन्यवाद.

Unknown said...
on 

adbhut !
adbhut !
adbhut !
_____________adbhut !

Udan Tashtari said...
on 

बहुत उम्दा रचना!!

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