बलि पथ के सुंदर प्राण

बलि पथ के सुंदर प्राण |
बलि होना धर्म तुम्हारा,
जीवन हित क्यों पय पान ||

आज खडा तू मंदिर आगे,
देव पुरुष के है भाग्य जागे |
टूट रहे है जग के धागे ||
मत मांग अभय वरदान ||१||
जीवन है कर्तव्य की कहानी,
चंद दिनों की मस्त जवानी |
मर कर चख ले रे अज्ञानी ||
कर ले पुरे अरमान ||२||
दीपक की बलि है जलने में,
फूलों की बलि है खिलने में |
बलि होता स्वच्छ सलिल झरने में ||
कह बलिदान चाहे कल्याण ||३||
वीर पूंग्वो की धरनी पर ,
प्रेममई भारत जननी पर |
यज्ञ भूमि दुःख ताप हरनि पर ||
अब जलने दो श्मशान ||४||
श्री तन सिंह बाड़मेर
२४ मार्च १९५०

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