क्षात्र धर्म की शान रखाने

क्षात्र धर्म की शान रखाने वीर जाति फिर जाग उठे ,
हल्दी घाटी के नालो से हर-हर की हुँकार उठे |
जग रक्षक का जयकार उठे ||

परशुराम ने कई बार जग क्षत्रिय विहीन करवाया |
यवनों ने गद्दारों ने फिर फूट डालकर कटवाया | |
अंग्रेजों ने आकर हमको हाँ हुजुर ही सिखलाया |
फिर भी जब-जब पड़ी भीड़ तब जौहर शाका दिखलाया |
बुझी हुई उस चिनगारी से विप्लव की सी आग उठे ||
जड़ चेतन सब जाग उठे ||

कुतुबुद्दीन की ऊँची अट्टा खड़ी-खड़ी क्या बता रही |
ये लाल किले ये मोती मस्जिद हाय -हाय क्या सुना रही ||
काबुल में जाकर देखो कबरें अब भी सिसक रही |
नव्वाबों की संताने अब तांगे इक्के चला रही ||
म्यानों में तलवारें तडफे शत्रु को ललकार उठे |
संघ मन्त्र गुंजार उठे ||

लहरें बन शत्रु जब आए चट्टानें बन भिडे हमीं |
प्यासी भारत माता के हित खूं के बादल बने हमीं ||
इस समाज की ढाल बने हम , शत्रु दल के काल हमीं |
दीवाने बन ऊंटाले में हमने ही तो फाग रमी ||
गली-गली में एक बार वही रंग सब घोल उठे |
होली की भी ज्वाल उठे ||
स्व.श्री तन सिंह : २८ मार्च १९४७ पब्लिक गार्डन जोधपुर |


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Comments :

1
Unknown said...
on 

matribhoomi ki abhinav abhyarthnaa ka geet pranamya hai

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