स्व.पु.श्री तनसिंहजी द्वारा लिखित पुस्तकें

1-राजस्थान रा पिछोला - पिछोला को अंग्रेजी में Elegy कहते है और उर्दू में मरसिया | मर्त्यु के उपरांत मृतात्मा के प्रति उमड़ते हुए करूँ उदगारों के काव्य रूप को ही पिछोला कहतें है | पिछोले म्रत्यु की ओट में गए प्रेमी की मधुर स्मृति पर श्रद्धा व प्रेम के भाव-प्रसून है |इस पुस्तक से करुण रस का रसास्वादन करके हम राजस्थानी साहित्य की सम्पन्नता प्रमाणित करने में समर्थ हो सकतें है |
2- समाज चरित्र - समाज जागरण के निमित केवल आन्दोलन ही उचित मार्ग नही है | आन्दोलन तो संगठन शक्ति का प्रदर्शन मात्र है | वह जनमत की अभिव्यक्ति है | किंतु स्वयम जनमत का निर्माण करना एक कठिन काम है | अनेक सामाजिक संस्थाएं सामाजिक शक्ति को उभारने का कार्य करती है,किंतु निर्बल की नैसर्गिक शक्ति बार -बार उभर कर अपने विनाश का कारण ही बनती है जब तक की शक्ति को उभारने वाले स्वयम शक्ति के उत्पादक न बन जाय | संस्थाएं स्वयम अपने और अपने उदेश्य के प्रति स्पष्ट नही होती तब तक सामाजिक चरित्र गोण ही बना रहता है |
इसी कमी को पुरा करने के लिए एक व्यवसायिक शिक्षण और मार्ग दर्शन की आवश्यकता महसूस करके यह पुस्तक लिखी गई | जो साधना की प्रारम्भिक अवस्था में साधकों का मार्ग दर्शन करने में उपयोगी सिद्ध हो रही है |
3-बदलते द्रश्य- इतिहास के इतिव्रतात्मक सत्य के अन्दर साहित्य के भावात्मक और सूक्ष्म सत्य के प्रतिस्ठापन की चेष्ठा ही समाज में चेतना ला सकती है | समाज में आत्म-सम्मान और आत्म-गौरव की भावनाओं का सर्जन करना इस पुस्तक का लक्ष्य है |
4- होनहार के खेल -पु.तनसिंहजी के पॉँच रोचक हिन्दी निबंदों से सृजित होनहार के खेल राजस्थान की संस्कृति,योधा समाज के जीवन दर्शन,और जीवन मूल्यों से ओत-प्रोत है इसमे राजपूत इतिहास और राजपूत सस्कृति मुखरित है | क्षत्रिय समाज के सतत संघर्ष,अद्वितीय उत्सर्ग,और महान द्रष्टि का शाश्वत सत्य गुंजित है | पु.तनसिंहजी की पीडा,तड़पन,उत्सर्ग की महत्ता और उत्थान की लालसा पुस्तक के प्रत्येक शब्द में संस्पदित है | हमारे लिए एतिहासिक आधार भूमि को ग्रहण कर एक जीवन संदेश है |
5-साधक की समस्याएं- साध्य प्राप्ति के लिए साधक के पथ में क्या समस्याएं व कठिनाईयां क्या है ? और कब-कब सामने किस रूप में बाधक बन कर आती है तथा उन्हें कैसे पहचाना जाय और उनका किस प्रकार सामना किया जाय इन सब पहलुओं का विस्तार से इस पुस्तक समाधान किया गया है |
6-शिक्षक की समस्याएं- सच्ची शिक्षा का अभिप्राय अपने भीतर श्रेष्ठ को प्रकट करना है | साधना के शिक्षक को प्राय: यह भ्रम हो जाता है कि वह किसी का निर्माण कर रहा है | सही बात तो यह है कि जो हम पहले कभी नही थे,वह आज नही बन सकते | हमारा निर्माण,किसी नवीनता की सृष्टी नही है,बल्कि उन प्रच्छन शक्तियों का प्रारम्भ है जिनसे हमारे जीवन और व्यक्तित्व का ताना बना बनता है | साधना पथ में स्वयम शिक्षक एक स्थान पर शिक्षक है और उसी स्थान पर शिक्षार्थी भी है | इसलिय शिक्षण कार्य में आने वाली समस्याएं शिक्षक की समस्याएं होती है | वे समस्याएं क्या है और किस रूप में सामने आती है,उनका समाधान क्या है ? यही इस पुस्तक का विषय है |
7- जेल जीवन के संस्मरण- भू-स्वामी आन्दोलन समय श्री तनसिंह जी को गिरफ्त्तार कर टोंक जेल में रखा गया था | जेल में जेलर और सरकार का उनके साथ व्यवहार व जेल में रहकर जो घटा और जो अनुभव किए उनके उन्ही संस्मरणों का उल्लेख इस पुस्तक में है |
8- लापरवाह के संस्मरण- इस पुस्तक में पु.तनसिंह जी के अपने अनुभव है तो उनके संघ मार्ग पर चलते उनके अनुगामियों का चित्रण भी है जिसे रोचक और मनोरंजक भाषा में पिरोकर पुस्तक का रूप दिया गया है |
9-पंछी की राम कहानी- संघ कार्य की आलोचना समय-समय पर होती रही है | तन सिंह जी की आलोचना और विरोध भी कई बार विविध रूपों में होता रहा है | विरोध के दृष्टीकोण से ही देखकर संघ के बारे में जिस प्रकार की आलोचना की गई या की जा सकती है उसे ही मनोविनोद का रूप देकर पु.तनसिंह जी ने एक लेखमाला का रूप दिया,जो इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है |
10-एक भिखारी की आत्मकथा- श्री तनसिंह जी द्वारा लिखित एक भिखारी की आत्मकथा बहु-आयामी संघर्षों के धनी जीवन का लेखा-जोखा है और यह लेखा-जोखा स्वयम श्री तनसिंह जी के ही जीवन का लेखा-जोखा है |वास्तव में आत्मकथा श्री तनसिंह जी की अपनी ही है |
11-गीता और समाज सेवा - गीता श्री तनसिंह जी का प्रिय और मार्गदर्शक रही है | गीता ज्ञान के आधार पर ही उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की थी | धेय्य निष्ठां और अनन्यता का मन्त्र भी उन्होंने गीता से ही पाया | क्षात्रशक्ति और संघ की आवश्यकता और महत्व भी उन्होंने गीता पढ़कर ही महसूस की |गीता का व्यवहारिक ज्ञान जिसमे कर्म,ज्ञान और भक्ति का अद्भुत समन्वय है, को संघ में उतारने का बोध भी उन्हें गीता से ही हुआ-इसी से प्रेरणा मिली | एक सच्चे समाज सेवक के लिए गीता का क्या आदेश है और किस प्रकार सहज भाव से किया जा सकता है और क्या करना आवश्यक है,इन्ही महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख "गीता और समाज सेवा " पुस्तक में किया गया है |
12- साधना पथ- गीता के आध्यात्मवाद के आन्दोलन पथ पर बढ़ते योगेश्वर श्री कृष्ण ने योग का जो मार्ग सुझाया है उसी लक्ष्य को सम्यक रूप से आत्मसात करने तक हर साधना को गतिमय होना चाहिय | सर्वांगीण साधना वही है जिसमे व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को जागृत कर सके स्वधर्म पालन एक महान कार्य है |महान कार्यों की पूर्ति के लिए ईश्वर से एकता स्थापित करना परमाव्यस्क है, किसी अनुष्ठात्मक भक्ति से ईश्वर को छला नही जा सकता |
श्री तन सिंह जी ने सम्पूर्ण योग योग मार्ग के आठ सूत्र सुझाएँ है वे हैं -
1- बलिदान का सिद्धांत 2- समष्टि योग 3- श्रद्धा 4- अभिप्षा 5- शरणागति 6- आत्मोदघाटन 7- समर्पण भाव
8- योग
14- झनकार- श्री तनसिंहजी द्वारा लिखे गए 166 गीतों,कविताओं आदि के संकलन को "झनकार" नाम देकर पुस्तक का रूप दिया गया है झनकार के एक-एक गीत एक-एक पंक्ति अपने आप में एक काव्य है |
उपरोक्त पुस्तकें " श्री संघ शक्ति प्रकाशन प्रन्यास A / 8, तारा नगर झोटवाडा, जयपुर -302012 से प्राप्त की जा सकती है |
संदर्भ - श्री संघ शक्ति प्रकाशन प्रन्यास द्वारा प्रकाशित " पूज्य श्री तनसिंहजी-एक परिचय " पुस्तक से


Reblog this post [with Zemanta]

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


Comments :

0 comments to “स्व.पु.श्री तनसिंहजी द्वारा लिखित पुस्तकें”

Post a Comment

 

widget
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
www.blogvani.com

Followers