मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?
सजाई सेज फूलों से मुकुट काँटों का क्यों पहने ?

धधकते ज्वालामुखियों पर तो शीतल झरने झरते है ,
सीने में न दिल रखते जगत की पीड़ा क्या जाने ?
मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

सीखा संघ से हमने तड़पना और तडपाना ,
मीरां सी न तन्मयता तो विष को अमृत क्यों माने ?
मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

चन्द्रसेन से लेकर उदय ने राज्य भोगा था ,
जिन्हें है मोह महलो से वनों की खाक क्यों छाने ?
मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

जग जीवन अमर मृत्यु का बाना पहने जीता है ,
जिनके है नहीं सिद्धांत मरना जीना क्या जाने ?
मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?

स्व.श्री तन सिंह : २२ मई १९४९ राजपूत बोर्डिंग हाउस जोधपुर |

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Comments :

2 comments to “मखमल पर जो सोते है मजा काँटों का क्या जाने ?”
Unknown said...
on 

dhnya ho !

jai ho !

समयचक्र said...
on 

bahut sundar rachana .

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