लो उतर पड़ी नैया देखे कौन डुबाते है |
इस सरिता की छाती हम चीरते जाते है ||
तट पर साथी दिखते,
है हाथो को मलते |
जो साथ में रहते है , वे साथी कहाते है |
जो दूर खड़े देखे , वे दर्शक होते है ||
ये जल की गहराई ,
ये तूफानी आंधी ,
ये निर्बल पतवारें ये नेत्र भी झपते है |
नैया डगमग करती तब दर्शक हंसते है ||
यह आंधी क्यों आती ?
यह लहरें क्यों उठती ?
आती है तो आवै हम बढ़ते जाते है |
रे सुनो ! चौनोती इनको देखें क्या कर लेते है ||
अब मेल हुआ देखो,
नैया की गति देखो ,
रे प्रेम भाव से हम बढ़ते जाते है |
आए रम्य किनारे बल और लगाते है||
स्व.श्री तन सिंह : २२ अप्रेल १९४८ जयपुर |
लो उतर पड़ी नैया
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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umda abhinav anupam geet...............
badhaai !
sundar geet.....badhiya
आभार इस प्रस्तुति का!
In sahgano ka koi jawab nahi
Tansinghji ke sahgano ka koi jawab nahi