मै जाति के उत्थान पतन की घडियां देख रहा हूँ |
............................................................मै घडियां देख रहा हूँ ||
मै देख रहा प्रात: की किरणे फ़ैल रही दिश-दिश में
मै देख रहा जागृत जग को उत्साह भरा है उसमे |
मै मुरझाए निज फूलों की पंखुडियां देख रहा हूँ ||
............................................................पंखुडियां देख रहा हूँ ||
दुनिया ने पर्वत पार किए है लांघी विशाल नदियाँ ,
फहराते विजय पताका अपनी हो गई उनको सदियाँ |
मै अपनी निर्बल जाति की आँखडियां देख रहा हूँ ||
............................................................ आँखडियां देख रहा हूँ ||
दुष्टों के हाथों पड़कर मेरी संस्कृति है अकुलाती ,
अहंभाव के बीच वीरता पड़ी है बिलबिलाती |
तब ही तो सडियल लोगो की हेकडियां देख रहा हूँ ||
......................................................... हेकडियां देख रहा हूँ ||
युवक संघ है आया सबको एक सूत्र में लाने ,
गत वैभव की शंख ध्वनी को घर-घर पहुचाने |
मै अंधरे में आशा की कुछ लड़ियाँ देख रहा हूँ ||
.........................................................लड़ियाँ देख रहा हूँ ||
आराम दक्ष और खेलकूद यह बौद्धिक चर्चा कैसी ,
लगी चोट झर रहा पसीना फिर मुस्काने कैसी |
अरे प्रेमभाव की कुछ कुछ तो फुलझडियाँ देख रहा हूँ ||
........................................................फुलझडियाँ देख रहा हूँ ||
स्व.श्री तन सिंह जी : २८ अगस्त १९४७
जाति के उत्थान पतन की
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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ati uttam geet....
baanch kar dhnyata prapt hui
badhaai !