मरुभूमि के मध्य

मरुभूमि के मध्य खिला यह कमल निराला रे |
..........................................................कमल निराला रे |
अरावली श्रेणी से फैला सूर्य उजाला रे |
...................................................सूर्य उजाला रे |
जागृति का भी जोश रमा है , प्रात: की सुन्दर सुषमा है |
गुण ग्राहक भौरों का निकला दल मतवाला रे | |
.............................................................. निकला दल मतवाला रे |
दल के दल भौरें आते है , अपनापन बिसरा जाते है |
मस्त बने है सब पीकर जीवन हाला रे ||
............................................................जीवन हाला रे ||
ताना कस कोई कहता है , अली कली में क्यों फंसता है |
अली बिचारा क्या गुण जाने खुद तो काला रे ||
..............................................................खुद तो काला रे ||
भंवरा भी प्रत्युतर देता , मरुधर है पानी ना होता |
फिर भी खिला अरे बावले , कमल निराला रे ||
................................................................ कमल निराला रे ||
ध्रुव तारा तारों से कहता , अरावली भुकण से कहता |
मान सरोवर कहता हंसो , मोती चुगना रे ||
.............................................................मोती चुगना रे ||
चुग प्राग की अतुल राशि ले , मरुवन को जाता भंवरा ले |
भारतवर्ष इसी से होगा कलियों वाला रे ||
.................................................................कलियों वाला रे ||
स्व.श्री तन सिंह जी द्वारा २३ फरवरी १९४७ को इटारसी ज. पर लिखा गया |

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Comments :

3 comments to “मरुभूमि के मध्य”
naresh singh said...
on 

श्री तन सिँह जी के काव्य संकलन की ये एक सुन्दर रचना है ।

Unknown said...
on 

rashtrabhakti ka jwar !
urja ki anupam dhaaar
rang raajputaaneka badhaai yogya
waah waah

Randhir Singh Suman said...
on 

nice

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