अब क्यों खडा तू मौन है ओ कौम के जवान
तेरे मंत्रो से कब जगेंगे पत्थर में सोये प्राण ||
युग से प्रतीक्षा में है दीपक जले रहे
कितने पतंगे जलकर रोशन बने रहे
मेरी परम्परा में तुम भरते रहे हो जान ||
किस्मत की ठोकरों में क्या तू कभी बहा
पर्वत थे ऊँचे ऊँचे फिर भी नहीं झुका
ज्योति तेरे अतीत की झुकवा दो आसमान ||
ज़माने का है तकाजा , तब ही तो मांग तेरी
ये आरजू हमारी करले जो मर्जी तेरी
मजबूरियों ने भेजा बेबस है हम नादान ||
ये जवानी काम की क्या , ये मौन कब खुलेगा ?
ये मन्त्र भी चलेंगे क्या, पत्थर भी क्या हिलेगा ?
ये कीमते इंसानियत की इनको चूका इंसान ||
स्व. तन सिंह जी : १९ सितम्बर १९६०
अब क्यों खडा तू मौन है ओ कौम के जवान
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आभार स्व. तन सिंह जी की रचना पढ़वाने का.