दे दो ! दे दो !
मन भटक रहा है द्वार द्वार |
मेरी यह नन्ही झोली तू दातार || मन......
घर का सारा धंधा छोड़ ,
सब दुनिया से नाता तोडा | मांग रहा निज कर पसार || मन ....
देव योग से बना भिखारी ,
व्यथा सामने रखदी सारी | ले ज्योति ताज अंधकार || मन....
ऐसा भिक्षुक नहीं मिलेगा ,
ऐसी अनुनय कोंन करेगा | छिपा नहीं है तू दे बलिहार || मन...
तू देगा तुझको देना है ,
हक़ मेरा बस हाँ लेना है | ना दे हाँ कर मन न हार || मन ...
दे दो ! दे दो ! अब तो तो दे दो !!
जो कुछ देना है सो दे दो | कदम बढा ताज अश्रु धार || मन...
स्व. श्री तन सिंह जी : १५ फरवरी १९५९ ;;
दे दो ! दे दो !
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सुंदर रचना !!
वाह !! बहुत ही सुन्दर भावप्रवण गीत...