अँधेरा है कितना और दीप कितने ,
देखें इस दुनिया में कौन अपने |
जिन्दगी की बाजी में अधूरे सपने ,
पुरे करने वाले देखें मीत कितने ||
राह न रुकेंगे झुकेंगे नहीं , मोड़ देंगे नदियाँ किन्तु मुड़ेंगे नहीं
खोल के तिजोरी आज देखेंगे ज़रा
कौन खोटा निकला है कौन है खरा
मोम के बने है वे तो चलते बने
फौलादी को अभी कई ताप तपने ||
एकता की श्रंखला में मिलाई कड़ी
कौम के लिए आज कौम की घडी
कौम में मगन हमारी कल्पना
ऐसे में जो रूठे उनकी क्या है साधना
पसीने के आज महाकाव्य रचने
जागरण के आओ नए मन्त्र जपने ||
बादलों से छाये नील गगन तले , झूमता हमारा मस्त कारवां चले
कोई हमसे पूछे कि जाते हो कहाँ
कौम की तासीर हमें ले जाए जहाँ
उड़े झीनी खेह के गुब्बार इतने
जमाने हो दुश्मन फिर चाहे कितने ||
9 जनवरी 1965
ज्ञान दर्पण : दुर्भाग्य का सहोदर
अँधेरा है कितना और दीप कितने
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत सुंदर रचना।
बेहतरीन रचना.
रामराम.
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
kISANE LIKHI HAI ?
tANSINGJI Ne ?